सुनील वर्मा
गाजियाबाद। गाजियाबाद में भाजपा ने रविवार रात मेयर प्रत्याशी घोषित कर दिया। भाजपा की प्रदेश उपाध्यक्ष सुनीता दयाल को मेयर प्रत्याशी बनाया गया है। इस हाईप्रोफाइल सीट को लेकर लखनऊ से दिल्ली तक जबरदस्त रार मची हुई थी। सूत्रों का कहना है कि भाजपा का एक बड़ा खेमा सुनीता दयाल की पैरवी कर रहा था, दिल्ली से लेकर लखनऊ तक के बडे नेताओं का दूसरा खेमा यशोदा हॉस्पिटल की मालकिन डा. शशि अरोड़ा की पैरवी कर रहा था। लखनऊ में गाजियाबाद से भेजे गए पहले पैनल को कैंसल करने के बाद जब दिल्ली को दूसरा पैनल भेजा गया तो उसमें सिर्फ दो नाम ही भेजे गए थे, जिसमें सुनीता के साथ डा. शशि अरोडा का भी नाम था।
भाजपा के दिल्ली मुख्यालय से जुडे एक पदाधिकारी का कहना है कि उत्तर प्रदेश में भाजपा की डबल इंजन सरकार का डंका बज रहा है। विधानसभा से लेकर निकाय चुनाव में यहां मोदी व योगी के नाम पर ही चुनाव लड़े जा रहे हैं। ऐसे में भाजपा से टिकट चाहने वालों की लंबी फेहरिस्त हैं। पार्टी के बडे नेता भी इस बात को जानते हैं कि किसी को भी टिकट थमा दो तो वह चुनाव जीत जाएगा। वैसे भी गाजियाबाद तो पूरी तरह भगवा गढ बन चुका है। ऐसे में दिल्ली से लेकर लखनऊ तक अधिकांश नेता डा. शशि अरोडा को मेयर का टिकट दिए जाने के पक्ष में थे। क्योंकि मेयर पद के लिए जरूरी नहीं की किसी सक्रिय नेता को ही टिकट दिया जाए। मेयर का पद बेहद गरिमामयी और बडी प्रोफाइल वाला होता है जिसके लिए कम सक्रिय नेता भी जल्द समायोजित हो जाता है। शायद डा शशि अरोडा का टिकट हो भी जाता लेकिन टिकट की घोषणा से 48 घंटे पहले महिला मोर्चा की नेताओं ने दिल्ली मे पार्टी मुख्यालय से लेकर लखनऊ तक में नेताओं की पत्नियों और बाहरी लोगों को टिकट देने के नाम पर ऐसा हंगामा बरपाया कि पार्टी हाईकमान सकते में आ गया। जिस कारण डा. शशि अरोडा का टिकट होते-होते रह गया।
डर चूंकि बगावत और 2024 के लिए गलत संदेश जाने का था इसलिए ऐन वक्त पर शशि अरोडा की जगह सुनीता दयाल का टिकट फाइनल कर दिया गया। इससे पहले निर्वतमान मेयर आशा शर्मा, मयंक गोयल की पत्नी डा. रूचि गर्ग, महानगर अध्यक्ष संजीव शर्मा की पत्नी, लज्जा रानी गर्ग के नाम लखनऊ में ही कट गए थे।
सुनीता दयाल को टिकट देकर पार्टी कार्यकर्ताओं को एक संदेश भी देना चाहती थी कि वह कार्यकर्ताओं की भावना का सम्मान करती है और देर से ही सही उसकी वफादारी का ईनाम जरूर देती है। वैसे भी सुनीता दयाल का राजनीतिक सफर अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद से शुरू हुआ था। इसके बाद वे भाजपा महिला मोर्चा में प्रदेश अध्यक्ष और फिर राष्ट्रीय महामंत्री तक पहुंचीं। साल-2004 में सुनीता दयाल ने गाजियाबाद से विधानसभा का उपचुनाव भी लड़ा, लेकिन सपा के सुरेंद्र कुमार मुन्नी से हार गई थीं।
2017 में सुनीता दयाल ने मेयर टिकट मांगा, लेकिन ऐन वक्त पर नाम लिस्ट से कट गया। प्रारंभ से संगठन में होने की वजह से सुनीता दयाल की पैरवी भाजपा का एक बड़ा वर्ग कर रहा था। दिल्ली में बहुत से लोग शशि अरोड़ा का टिकट चाहते थे। ऐसे में महिला मोर्चा की ओर से किए गए हंगामे ने सुनीता दयाल के लिए संजीवनी बूटी का काम किया और टिकट की जंग में सुनीता दयाल बाजी मार गई हैं।