मनोरंजन

OTT प्लेटफॉर्म पर एडल्ट कंटेंट बने ‘देसी सॉफ्टपॉर्न’ के थियेटर

दिल्ली। नेटफ्लिक्स संस्कृति के भारत में उदय से बहुत पहले, याद कीजिए 1990 और 2000 का दशक. फिल्मों की शौकीन जनता को ‘मारधाड़, एक्शन, संगीतमय, पारिवारिक’ फिल्मों के अलावा भी बहुत कुछ चाहिए होता था. ऐसे दर्शकों की यह खास जरूरत कुछ हद तक ‘मॉर्निंग शोज’ में पूरी होती थी. देश में तब सिंगल स्क्रीन थिएटर्स का बोलबाला था और ‘मॉर्निंग शोज’ के जिक्र भर से सामने वाले के होठों पर एक शरारती मुस्कान आ जाती थी. सभ्रांत लोग इन्हें ‘एडल्ट’ जबकि बड़े-बुजुर्ग ‘गंदी फिल्में’ कहते थे. इन फिल्मों की बहुत सारी बातें कॉमन थीं. मसलन- इनके पोस्टरों की शोभा अल्प वस्त्रों वाली महिला किरदार बढ़ाती थीं. पोस्टर पर बड़े गोले में A छपा होता था और साथ में वैधानिक संदेश- केवल वयस्कों के लिए. सिगरेट पैकेट पर छपी चेतावनी की तरह ही ये भी बेमतलब सा था. इन फिल्मों के मुरीद कुछ खास ‘बदनाम’ सिंगल थिएटरों में जुटते थे. स्कूली यूनिफॉर्म में मुंह पर रूमाल बांधे छात्र, अधेड़ से लेकर बुजुर्ग, सभी आगे की सीट पाने के लिए धक्कामुक्की करते थिएटर में घुसते थे. छिपते छिपाते सीट पर बैठे तो टिकट चेकर की टॉर्च की रोशनी दुश्मन सी महसूस होती है और फिल्म शुरू होते ही बजने वाली सीटियां दिल की धड़कनों को सामान्य करती जाती थीं.

आज ‘ऑल्ट बालाजी’ का युग है. ‘गंदी’ फिल्मों को अब ‘इरॉटिक कंटेंट’ कहा जाने लगा है. एक से बढ़कर एक ओटीटी प्लेटफॉर्म हैं, जिनके जरिए ये बेहद आसानी से टीवी, कम्प्यूटर से लेकर स्मार्टफोन की स्क्रीन तक पर उपलब्ध हैं. सामाजिक स्वीकार्यता पहले से काफी ज्यादा है, इसलिए एक ही ओटीटी पर मौजूद विभिन्न आयुवर्ग के कंटेंट घर के ड्रॉइंग रूम से लेकर बेडरूम तक में अलग-अलग देखे जा रहे हैं. हालांकि, नेटफ्लिक्स, एमेजॉन प्राइम और ऑल्ट बालाजी जैसे बहुचर्चित नामों के बीच कुछ अनजान से ओटीटी प्लेटफॉर्म्स और ऐप्स ने भी बीते कुछ वक्त में तेजी से जगह बनाई है. फ्लिज़ मूवीज, हॉटशॉट डिजिटल एंटरटेनमेंट्स, 8शॉट्स, एम प्राइम, गुपचुप, कुकू, फेनेओ मूवीज, सिनेमा दोस्ती कुछ ऐसे ही नाम हैं. इन प्लेटफॉर्म्स पर ‘देसी’ इरॉटिक कंटेंट की भरमार है. इन पर मौजूद फिल्मों और ‘वेब सीरीज’ के नामों की बानगी देखिए- माया, भाभी गरम, डर्टी स्टोरीज, लवली गर्ल, लव इन लॉकडाउन, पति पत्नी और वो, ओपन मैरिज…. 90 के दशक में जवान हुए हैं तो ऐसे नाम एक बारगी आपको नॉस्टालजिक कर सकते हैं.

लाखों यूजर्स, पेड सब्सक्रिप्शन

ये ओटीटी प्लेटफॉर्म्स वेबसाइट से लेकर मोबाइल ऐप्स तक के जरिए एडल्ट कंटेंट उपलब्ध करा रहे हैं. स्मार्टफोन्स की बात करें तो एंड्रॉएड और आईओएस पर इनके ऐप्स के डाउनलोड चंद हजार से लेकर लाखों में हैं. उदाहरण के तौर पर फ्लिज मूवीज और कुकू ऐप को एंड्रॉएड पर 10 लाख से ज्यादा यूजर्स ने डाउनलोड किया है. वहीं, हॉट शॉट डिजिटल एंटरटेनमेंट, फेनेओ और सिनेमा दोस्ती को एंड्रॉएड पर 1 लाख से 5 लाख यूजर तक इस्तेमाल कर रहे हैं. ऐसा नहीं है कि महज ऐप भर डाउनलोड कर लेने से आप इन कंटेंट को देख पाएंगे. वेबसाइट या ऐप्स पर लॉगिन करने के बाद आपको एक ठीक ठाक रकम भी चुकानी होगी. मंथली से लेकर ईयरली सब्सक्रिप्शन पैकेज लेने का विकल्प है. 300 रुपये से लेकर 3399 रुपये तक के प्लान हैं. कुछ ऐप्स पर तो ‘लाइव शो’ देखने की सुविधा भी मिल रही है.

इंडियन सॉफ्टपॉर्न का बड़ा दर्शक वर्ग!

भारत में एडल्ट कंटेंट को लेकर एक मोटा मोटी स्वीकार्य परिभाषा है. सिल्वर स्क्रीन पर ऐसी फिल्मों को ‘ए’ सर्टिफिकेट के साथ रिलीज किया जाता है. वर्तमान में ओटीटी प्लेटफॉर्म्स पर ऐसा कंटेंट बेहद आसानी से उपलब्ध है, जिनमें फ्रंटल न्यूडिटी या सेक्स सींस की भरमार होती है. हालांकि, इनमें से अधिकतर विदेशी फिल्में या सीरीज हैं. बीते कुछ वक्त में कुछ भारतीय फिल्में या सीरीज की भी इस श्रेणी में एंट्री हुई है, लेकिन ये नाम मात्र के ही हैं. जानकार मानते हैं कि भले ही आज इंटरनेट पर सब कुछ उपलब्ध हो, लेकिन दर्शकों का एक तबका शायद 90 के दशक में सिंगल थिएटरों में खास विधा में परोसे जाने वाले उस ‘देसी’ इरॉटिक कंटेंट की कमी महसूस कर रहा था. मल्टीप्लेक्स की वजह से सिंगल थिएटरों का अवसान हुआ और बढ़ती पायरेसी ने ऐसी सामग्रियों के अस्तित्व को ही सीमित कर दिया. शायद अब इस देसी इरॉटिक कंटेंट को तकनीकी क्रांति के इस युग में टारगेट ऑडियंस तक पहुंचाने का सही तरीका दोबारा से ईजाद हो गया है. कम से कम इन ओटीटी प्लेटफॉर्म्स की कामयाबी तो यही बताती है. कुछ मीडिया रिपोर्ट्स में भी बताया गया है कि लॉकडाउन में ऐसे इरॉटिक कंटेंट की डिमांड कई गुना तक बढ़ गई है.

क्या है इंडियन सॉफ्टपॉर्न?

इसे समझने के लिए हमें एक बार फिर सिंगल थिएटरों और वहां चलने वाली एडल्ट फिल्मों के दौर का रुख करना होगा. इन फिल्मों में निजी पलों के दृश्यों का फिल्मांकन पोर्नोग्राफी से प्रभावित तो था लेकिन इन्हें सीमित तरीके से दिखाया जाता था. ऐसी फिल्मों में बाथरूम या नदी में अभिनेत्रियों के नहाने के दृश्य आम होते हैं. भूत प्रेत भी अक्सर ऐसे ही हालात में इन अभिनेत्रियों पर हमला कर देते थे. भाभियां इन फिल्मों में पुरुषों की फैटेंसी की केंद्रबिंदु होती थीं. वहीं, दर्शकों की डिमांड पूरी करने के लिए इन फिल्मों में कुछ बाइट्स अलग से फिल्माए जाते थे, जिनमें फ्रंटल न्यूडिटी के दृश्य भी होते थे. फिल्मों के बीच इन बाइट्स को दिखाया जाता था. वहीं कानूनी निगरानी की स्थिति में ये दृश्य फिल्मों के बीच में से वैसे ही गायब कर दिए जाते थे, जैसे भैंस के सिर से सींग. इन फिल्मों से ही इंडियन सॉफ्टपॉर्न की एक शैली विकसित हुई, जिनकी झलक वर्तमान में इन ओटीटी प्लेटफॉर्म पर परोसे जा रहे इरॉटिक कंटेंट में भी देखने को मिल रही है. महिला किरदारों के स्नान और ‘असंतुष्ट’ भाभियों ने इनके कथानक में वापस से अपना पुराना मुकाम हासिल कर लिया है.

सोशल मीडिया से जमकर प्रमोशन लेकिन ऐहतियात

इन फिल्मों और कथित वेब सीरीज में पहचान बनाने के लिए जद्दोजहद करते ‘डेयर टु बेयर’ जनरेशन के कलाकारों की पूरी फौज काम कर रही है. बोल्ड दृश्यों में ये कलाकार बेहद सहज से नजर आते हैं. दिलचस्प बात यह भी है कि इन फिल्मों और वेब सीरीज का फेसबुक, टि्वटर, यूट्यूब और इंस्टाग्राम पर जोर शोर से प्रचार किया जाता है. हालांकि, यहां अपलोड टीजर और ट्रेलर जब आप देखेंगे तो आपको शायद ही ऐहसास हो कि इन फिल्मों में असल में कैसी सामग्री पेश की जा रही है. जब इन प्लेटफॉर्म्स के असल कंटेंट को देखेंगे तो दूसरा वर्जन दिखेगा. साफ है कि निगरानी से बचने के लिए बड़े मंचों पर इनके प्रमोशन के दौरान सावधानी बरती जाती है. वहीं, ऐसी फिल्मों में काम करना अब नवोदित अभिनेत्रियों के लिए शर्म या संकोच की बात नहीं रही. ये दर्शकों से सोशल मीडिया पर रूबरू होती हैं और बाकायदा इनके इंट्रोडक्शन के वीडियोज भी अपलोड किए जाते हैं. इसकी कुछ बानगी नीचे है.

पॉर्न वेबसाइटों पर क्यों हिट हुआ ओटीटी कंटेंट?

हालांकि, इस बीच, इन फिल्मों को बनाने वाले और इनमें काम करने वाले लोगों के सामने नया संकट पैदा हो गया है. इन इरॉटिक कंटेंट ने पॉर्न वेबसाइटों पर जगह बना ली है. पॉर्न वेबसाइट्स पर इन्हें ‘इंडियन वेब सीरीज’ के नाम से अपलोड किया जा रहा, जिनको देखने वालों की तादाद लाखों में है. जाहिर है, इससे इन कंटेंट को तैयार करने वालों को बड़ा आर्थिक नुकसान हो रहा है. वहीं, समुचित निगरानी से बाहर चल रहे इस बिजनेस की वजह से अब इन वेब सीरीज में काम करने वाले कलाकारों पर भी साइड इफेक्ट दिखने लगा है. मध्य प्रदेश के इंदौर में हाल ही में कथित तौर पर पॉर्न फिल्म बनाने वाले एक रैकेट का खुलासा हुआ. आरोप है कि वेब सीरीज में लॉन्च करने का झांसा देकर इंदौर की एक मॉडल का यौन उत्पीड़न किया गया. पीड़िता के मुताबिक, वेब सीरीज में काम दिलवाने के बहाने कुछ बोल्ड सीन शूट किए. बताया गया कि इसे कांट-छांट के बाद ओटीटी प्लेटफॉर्म पर रिलीज किया जाएगा, लेकिन हुआ उल्टा. पीड़िता का कहना है कि पूरा का पूरा वीडियो पॉर्न वेबसाइट पर अपलोड कर दिया गया.

क्या कहते हैं एक्सपर्ट

साइबर एक्सपर्ट पवन दुग्गल मानते हैं कि मॉनिटरिंग और कानूनी खामियों की वजह से भी इन इरॉटिक कंटेंट परोसने वाले ओटीटी प्लेटफॉर्म्स में तेजी आई है. साल 2000 में आए सूचना प्रौदयोगिकी कानून में अश्लील कंटेंट और पोर्नोग्राफी को लेकर कुछ प्रावधान तो हैं, लेकिन इनके तहत कार्रवाई करने को लेकर कानूनी एजेंसियां अक्सर उदासीन ही रहती है. ऐसे में, इन ओटीटी प्लेटफॉर्म्स को पूर्णतया नियंत्रित करने के लिए ठोस और स्पष्ट कानूनी प्रावधान नहीं हैं. सरकार इनको नियंत्रित करने के लिए जरूरी कानून अभी तक नहीं ला पाई है. पवन दुग्गल कहते हैं कि इसके लिए भारत के आईटी एक्ट में संशोधन करना बेहद जरूरी है. कानूनी संशोधन एक जटिल प्रक्रिया है, ऐसे में ऑर्डिनेंस लाकर भी इन ओटीटी प्लेटफॉर्म्स को नियंत्रित किया जा सकता है. दुग्गल के मुताबिक, इंटरनेट के इस युग में हर शख्स एक कंटेंट क्रिएटर की भूमिका में है, ऐसे में सेंसरशिप तो बिलकुल मुमकिन नहीं है. हमारी फिल्मों, टीवी, प्रिंट मीडियम की तरह ही ओटीटी प्लेटफॉर्म्स को भी नियंत्रित करना वक्त की मांग है. इन ओटीटी प्लेटफॉर्म्स की भी जिम्मेदारी तय करनी होगी.

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