नई दिल्ली । चीन ने पीपल्स लिब्रेशन ऑर्मी की एक बटालियन को उत्तराखंड में लिपुलेख पास के नजदीक तैनात किया है। इस मामले की जानकारी रखने वाले लोगों ने हिन्दुस्तान टाइम्स को बताया कि यह लद्दाख सेक्टर के बाहर लाइन ऑफ एक्चुअल कंट्रोल (LAC) पर मौजूद उन ठिकानों में से एक है जहां पिछले कुछ सप्ताह में चाइनीज सैनिकों की आवाजाही दिखी है।
भारत और चीनी सैनिकों के बीच पूर्वी लद्दाख में मई पहले सप्ताह में तनाव की शुरुआत हुई और 15 जून को दोनों देशों के सैनिकों में हिंसक झड़प हुई, जिसमें 20 भारतीय सैनिक शहीद हो गए, चीन ने अपने हताहत सैनिकों की संख्या का खुलासा नहीं किया है। पिछले 45 साल में पहली बार दोनों देशों के सैनिकों में इस तरह खूनी झड़प हुई। राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल और चीन के विदेश मंत्री वांग यी के बीच बातचीत के बाद दोनों देश सैनिकों को पीछे हटाकर तनाव कम करने पर सहमत हुए।
एक तरफ चीन ने सैनिकों को पीछे हटा लेने का दावा किया तो भारतीय विदेश मंत्रालय ने कहा कि प्रक्रिया की शुरुआत जरूर हुई है, लेकिन काम अभी पूरा नहीं हुआ है। इसके साथ ही लद्दाख में भारतीय सेना के अधिकारियों ने नोटिस किया है कि पिछले इलाकों में चीनी सैनिकों की संख्या बढ़ रही है, वे इन्फ्रास्ट्रक्चर तैयार करने में जुटे हैं। एलएसी पर दूसरे जगहों पर भी चीन अपनी मौजूदगी बढ़ा रहा है।
एक टॉप सैन्य कमांडर ने कहा, ”लिपुलेख पास, उत्तरी सिक्किम और अरुणाचल प्रदेश के कुछ हिस्सों में एलएसी पर पीएलए सैनिकों का जमावड़ा है।” लिपुलेख पास मानसरोवर यात्रा रूट पर है, जो इन दिनों नेपाल से विवाद को लेकर सुर्खियों में बना हुआ है। यहां भारत की ओर से बनाए गए 80 किलोमीटर सड़क पर नेपाल ने आपत्ति जताई थी। लिपुलेख पास के जरिए एलएसी के आरपार रहने वाले भारत और चीन के आदिवासी जून-अक्टूबर के दौरान वस्तु व्यापार करते हैं।
काठमांडू ने अपने नए राजनीतिक नक्शे में बदलाव करके भारत के साथ तनाव पैदा किया। नेपाल ने नए नक्शे में भारतीय इलाकों कालापानी, लिपुलेख और लिंपियाधुरा को शामिल कर लिया। लिपुलेख भारत-चीन-नेपाल सीमा के ट्राइजंक्शन पर है।
अधिकारियों ने बताया कि लिपुलेख पास पर पीएलए ने एक बटालियन को तैनात किया है, जिसमें करीब 1000 सैनिक हैं, ये सीमा से कुछ दूरी पर हैं। एक दूसरे सैन्य अधिकारी ने कहा, ”यह सिग्नल है कि चीनी सैनिक तैयार हैं।” उन्होंने कहा कि भारत ने पीएलए सैनिकों के बराबर संख्या बढ़ा दी है और नेपाल पर भी नजर रखी जा रही है।
वरिष्ठ सैन्य अधिकारी ने कहा, ”लाइन ऑफ एक्चुअल कंट्रोल पर स्थिति लगातार बदल रही है। चीनी सैनिक लद्दाख के अलावा दूसरे जगहों पर मौजूदगी बढ़ा रहे हैं और इन्फ्रास्ट्रक्चर को भी मजबूत किया जा रहा है।” लद्दाख और दूसरे जगहों पर चीनी सैनिकों की आवाजाही के मुताबिक भारत ने भी अपने सैनिकों को तैयार रखा है। भारत लद्दाख में सर्दियों के लिए भी तैयारी में जुटा है।
भारत से बिगड़े रिश्ते का चालाकी से फायदा उठा रहा चीन
भारत और नेपाल के बीच आपसी रिश्तों में खटास का फायदा चीन लगातार उठा रहा है। एक बार फिर से चीन ने नेपाल को अपने शब्दों के बाण से फांसने और उसे भारत से दूर करने की कोशिश की है। चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग की अगुवाई में चीन के शीर्ष नेतृत्व ने चीन-नेपाल मित्रता के निरंतर विकास की सराहना करते हुए कहा कि बीजिंग ने हमेशा काठमांडू को अपने बराबर माना है। चीन की यह प्रतिक्रिया इसलिए भी अहम है क्योंकि भारत के साथ बीते कुछ समय से नेपाल के रिश्ते अच्छे नहीं हैं, वहीं चीन के साथ उसके संबंध लगातार बेहतर हो रहे हैं।
चीन और नेपाल के बीच द्विपक्षीय संबंधों की स्थापना की 65 वीं वर्षगांठ पर नेपाली समकक्ष बिद्या देवी भंडारी के साथ बधाई संदेशों का आदान-प्रदान करते हुए शी जिनपिंग ने कहा कि चीन नेपाल के साथ द्विपक्षीय संबंधों की निरंतर प्रगति के लिए आगे बढ़चढ़ कर काम करेगा। शनिवार सुबह आधिकारिक मीडिया में प्रकाशित एक बयान के अनुसार, शी ने कहा कि दोनों देशों ने हमेशा एक-दूसरे का सम्मान किया, एक-दूसरे के साथ समान व्यवहार किया, राजनीतिक आपसी विश्वास बढ़ाया और पारस्परिक रूप से लाभप्रद सहयोग को गहरा किया।
शी जिनपिंग ने आगे कहा कि कोरोना वायरस के खिलाफ लड़ाई में दोनों देश कंधे से कंधा मिलाकर खड़े हुए हैं और दोनों पक्षों ने चीन-नेपाल के बीच दोस्ती का नया अध्याय लिखा है। वहीं अंतर्राष्ट्रीय सहयोग के लिए नेपाली समकक्ष विद्या देवी भंडारी ने बीजिंग और शी जिनपिंग की तारीफ की। उन्होंने कहा कि नेपाल मानव जाति के लिए साझा भविष्य के साथ एक समुदाय के निर्माण के चीन द्वारा प्रस्तावित दृष्टिकोण का स्वागत करता है और बेल्ट एंड रोड के सह-निर्माण पर सहयोग में सक्रिय रूप से शामिल है।
इसके अलावा, अलग से चीनी प्रधानमंत्री ली केकियांग ने अपने समकक्ष प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली के साथ चीन और नेपाल के बीच आपसी विश्वास और दोस्तीको बढ़ाने के बारे में बात की। ली ने कहा कि चीन विभिन्न क्षेत्रों में उच्च स्तरीय निर्माण और बेल्ट एंड रोड पहल में चौतरफा सहयोग को मजबूत करने के लिए नेपाल के साथ काम करने के लिए तैयार है और यह द्विपक्षीय संबंधों को नए स्तरों तक ले जा सकता है। वहीं ओली ने अपने बधाई संदेश में कहा कि राजनयिक संबंधों की स्थापना के बाद से द्विपक्षीय संबंधों में निरंतर विकास देखा गया है।
दरअसल, जून में नेपाल ने अपने देश का एक संशोधित मैप जारी किया था, जिसके बाद से भारत के साथ उसके रिश्ते थोड़े खराब हुए हैं। नेपाल ने नया राजनीतिक नक्शा जारी किया, जिसमें उसने कालापानी, लिपुलेख और लिंपियाधूरा को अपने क्षेत्र में दिखाया है। जबकि भारत ने नवंबर 2019 में जारी नक्शे में ट्राई जंक्शन को रखा था।
रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने उत्तराखंड में चीन के साथ लगी सीमा के पास रणनीतिक रूप से महत्वपूर्ण 80 किलोमीटर सड़क को खोला था, जो लिपुलेख पास के पास खत्म होता है। नेपाल ने सड़क को खोले जाने पर आपत्ति जताई थी। हालांकि, भारत ने इसे इसलिए बनाया ताकि कैलाश मानसरोवर की यात्रा आसान हो जाए।
इधर नई दिल्ली का मानना है कि चीन के इशारे पर ही काठमांडू इस पुराने विवाद पर सिनाजोरी कर रहा है। भारतीय सेना प्रमुख एमएम नरवने ने भी इस इशारा किया था कि नेपाल भारत की नई सड़क का विरोध इसलिए कर रहा है, क्योंकि उसे कोई उकसा रहा है।
वहीं, नेपील प्रधानमंत्री के पी ओली ने जून में आरोप लगाया था कि भारत उसे सत्ता से बेदखल करने के लिए ऐसी साजिश रच रहा है। इतना ही नहीं, केपी ओली ने एक और चौंकाने वाला बयान दिया था कि वास्तविक अयोध्या भारत में नहीं, बल्कि नेपाल में है।