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सियाचिन में तैनात जवानों को ठंड से बचाने के लिए दी जा रही घटिया विंड-वाटर प्रूफ जैकेट?

गुणवत्‍ता जांच में मानकों के अनुरूप न पाए जाने के बावजूद श्रीलंका की कंपनी काे कौन दे रहा है जैकेट सप्लाई का ठेका

सुनील वर्मा

नई दिल्‍ली। श्रीलंका की जिस कंपनी को घटिया माल की आपूर्ति करने के आरोपों में ब्‍लैकलिस्‍ट करना चाहिए था रक्षा मंत्रालय उसी कंपनी को सफल आपूर्तिकर्ता की श्रेणी में रखकर इस बार भी नया टेंडर देने की तैयारी कर रहा है।

कोरोना महामारी के बीच चीन के साथ चल रहे सीमा विवाद के कारण लेह, लद्दाख और सियाचीन में हजारों की संख्‍या में जवानों की तैनाती की गई है। लेकिन सवाल उठता है कि क्‍या माइनस 50 डिग्री तक बर्फीली ठंड वाले इलाकों में तैनात जवानों को पहने के लिए जो विशेष जैकेट और किट दी जा रही है वो तय किए गए मानकों के अनुरूप हैं।

ये सवाल इस लिए उठ रहा है क्‍योंकि लद्दाख और सियाचीन जैसे इलाकों में तैनात सेना के जवानों को कडाके की ठंड और बर्फीले तूफान से बचाने के लिए पहनने के लिए दी जाने वाली जैकेट की सप्‍लाई की जाने वाली जैकेटों की गुणवत्‍ता पर सालों से लगातार सवाल उठते रहे हैं। जैकेटों की सप्‍लाई से जुड़े इस घोटाले में 2014 से ही शिकायतों का दौर चल रहा है। भाजपा सांसद रीता बहुगुणा और सियाचिन में तैनात जवान अर्सा पहले से इस कंपनी की घटिया जैकटों की शिकायतें रक्षा मंत्रालय और पीएमओ से कर चुके है। लेकिन रक्षा मंत्रालय के मास्‍टर जनरल ऑफ ऑर्डिनेंस ब्रांच यानि एमजीओ के अधिकारियों की मिलीभगत से इस घोटाले का लगातार दबाया जा रहा है। रक्षा मंत्रालय में गहरी जड़े जमाकर बैठी श्रीलंका की दागी कंपनी को फिर से जैकेटें की सप्‍लाई के लिए अनुबंधित करने की तैयार चल रही है।

श्रीलंका की कंपनी रेनवियर की जैकेट 2015 में गुणवत्ता जांच में फेल हाे गयी थी

बता दें कि सियाचिन, जहां तापमान शून्‍य से 50 डिग्री तक होता है वहां तैनात जवानों को बर्फीले तूफान व ठंड से बचाने के लिए हल्‍के भार की थ्री लेयर जैकेट दी जाती हैं। यूपीए टू के कार्यकाल में साल 2009 के दौरान एमजीओ ने एक टेंडर के जरिए श्रीलंका की कंपनी रेनवियर प्रा.लि. को 2012 से 2014 तक इन जैकटों के 60 हजार पीस की सप्लाई का ठेका दिया था। 2012 में पहली खेप में सप्‍लाई जैकेट ठीक क्‍वालिटी की थी लेकिन उसके बाद 2013 व 2014 में जो जैकेट सप्‍लाई की गई वे फेदर टच की जगह बेहद घटिया मैटीरियल से तैयार की गई थी। उस दौरान इनका इस्‍तेमाल करने वाले सियाचिन में तैनात 14 जवानों ने आर्मी मुख्‍यालय को लगातार दो शिकायती पत्र भेजकर आरोप लगाया था कि उन्‍हें जो जैकेट मिली है वे न तो विंड प्रुफ है न वाटर प्रुफ यानि ये जैकेट थ्री लेयर मानक स्‍टैंडर्ड पर खरी नहीं उतरती।

रक्षा मंत्रालय के अधीन काम करने वाले रक्षा उत्‍पादन विभाग के गुणवत्‍ता आश्‍वासन महानिदेशालय ने जब इन शिकायतों पर रेनवियर प्रा.लि. की जैकेटों की प्रयोगशाला जांच कराई तो जैकेट की घटिया क्‍वालिटी होंने के आरोप सही पाए गए। जिसके बाद निदेशालय ने कंपनी को ब्‍लैकलिस्‍ट करने की अनुसंशा के साथ रिपोर्ट मंत्रालय को भेज दी।

सूत्रों का कहना है कि रक्षा मंत्रालय के एक अधिकारी पर भ्रष्‍टाचार करके कंपनी से मिलीभगत कर उसे ठेका दिलाने में मदद के गंभीर आरोप भी लगे थे। हैरानी की बात ये है कि श्रीलंकाई कंपनी के रक्षा मंत्रालय में मिलीभगत के कारण उसे ब्‍लैकलिस्‍ट करने की अनुशंसा वाली जांच रिर्पोट का दबा दिया गया । उसके बाद एमजीओ ने जुलाई 2017 में फिर से इसी कंपनी को तत्‍काल आपूर्ति की मांग करते हुए 285 डालर प्रति जैकेट के हिसाब से 30 हजार जैकेटों की

आपूर्ति करने का आर्डर दे दिया। हांलाकि 2017 की अवधि में सिंगापुर की एक कंपनी को भी कुछ ऐसी ही जैकेटों का ठेका मिला था जो कीमत में भी कम थी और गुणवत्‍ता जांच में भी सही पायी गई थी। लेकिन सिंगापुर की उस कंपनी को बाद में एमजीओ ने किसी आपूर्ति का ठेका नही दिया।

जवानों को खराब गुणवत्‍ता वाली जैकेट सप्‍लाई करने का मामला संज्ञान में आने के बाद 2 जुलाई 2019 को यूपी सरकार में महिला कल्‍याण मंत्री रीता बहुगुणा ने भी रक्षामंत्री को एक पत्र लिखा था। जिसमें उन्‍होंने कुछ लोगों की शिकायत के आधार पर रेनवियर कंपनी के सामान की जांच करने के लिए कहा था। लेकिन हैरानी इस बात पर है कि 22 जून 19 को एमजीओ ने फिर से ऐसी ही जैकेटों का टेंडर श्रीलंका की कंपनी रेनवियर प्रा.लि. को जारी कर दिया। सूत्रों का कहना है कि गत वर्ष भी कंपनी की जैकेट व अन्‍य उपकरणों की घटिया क्‍वलिटी की शिकायतें सामने आई थी लेकिन उन्‍हें दबा दिया गया।

दिलचस्‍प बात ये है कि इसी जुलाई माह में श्रीलंका की कंपनी रेनवियर प्रा.लि. को फिर से टेंडर देने के लिए सलेक्‍ट कर लिया गया है। इस संबध में जब रक्षा मंत्रालय के प्रवक्‍ता व अन्‍य अधिकारियों से संपर्क की कोशिश की गई तो उन्‍होंने इस मामलें पर चुप्‍पी साध ली। सवाल उठता है कि जिस मोदी सरकार ने यूपीए सरकार में सेना के नाम पर लूट खसोट के आरोप लगाए थे, वहीं सरकार पिछले छह सालों में एक विदेशी कंपनी द्वारा मोटी रकम लेकर भी जवानों को घटिया जैकेट सप्‍लाई करने के रैकेट को क्‍यों नहीं रोक पायी।

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