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पैट्रोल-डीजल की कीमतों पर ऐसा प्रलाप क्यों?

सोशल मीडिया से लेकर आम बहस के दौरान देश के ज्यादातर लोग खुद को राष्ट्र भक्त बताने के लिए इतनी लंबी चौडी डींगे मारते हैं जिससे लगने लगता है कि हमारा पूरा देश राष्ट्र भक्तों से भरा पड़ा है। लेकिन सच्चाई इसके एकदम उलट है। मामूली सा संकट आने पर ऐसे बयान वीर खुद देश के लिए संकट पैदा करने के लिए खड़े हो जाते हैं। जैसा कि हाल के दौर में चल रहा है। कोरोना संकट के बीच देश में लॉकडाउन के कारण जो आर्थिक हालात बने हैं उससे उभरने के लिए सरकार ने थोडे सख्त आर्थि‍क कदम क्या उठाने शुरू किए कि राष्ट्रभक्ति का अलाप रागने वाले सरकार के खिलाफ प्रलाप करने में जुट गए है।


तीन महीने में लॉकडाउन के दौरान केन्द्र सरकार की आय के तीनों बड़े स्रोत जीएसटी, पैट्रोल पदार्थो से आने वाला राजस्व और आबकारी शुल्क पूरी तरह बंद हो गया था, जिसमें अनलॉक के दौरान केवल पैट्रोल पदार्थो से ही आशातीत प्राप्ति हो शुरू हुई है। लेकिन अभी भी ऐसे बहुत से आय के रास्ते बंद पड़े है जिससे सरकार का खजाना भरता है। जबकि इसके उलट सरकार के खर्चो में बेतहासा वृद्धि हुई है।

अचानक आई कोरोना की बीमारी से लडने के लिए राष्ट्रीय स्तर पर स्वास्थ्य ढांचा खडा करने के साथ राज्यों को इससे निपटने के लिए जरूरी फंड उपलब्ध कराया गया। निम्न आयवर्ग वाले करोड़ो लोगों को उनके खातों में सीधे पैसा भेजकर आर्थिक मदद दी गई। प्रधानमंत्री राशन योजना के तहत देशभर में गरीबों के राशन की दुकानो से मुफ्त राशन का वितरण किया गया जो आगामी कुछ महीनों में भी जारी रहेगा। सरकार ने कामगारों, किसानों और गरीब लोगों के लिए कर्ज से लेकर उनकी मदद करने के लिए ऐसी कई योजनाएं शुरू की जिनमें कई सौ करोड खर्च हुए।


अब अगर ऐसे में सरकार तेल के दामों में कुछ रूपए की वृद्धि करके राजकोषीय घाटे को पूरा करने की कोशिश कर रही है तो तथाकथित राष्ट्र प्रेमी और विपक्ष ऐसा प्रलाप कर रहा है मानों सरकार ने दोनों हाथों से लूट खसोट शुरू कर दी हो। आज हमारे देश की पूरी रेलवे बंद पड़ी है मतलब रेलवे से आने वाला राजस्व शून्य। लेकिन रेलवे कर्मचारियों से लेकर सभी सरकारी विभागों को सैलरी पूरी दी जा रही है।

हमारे देश में करोड़ों पेंशन धारी है जिन्हें पेंशन पूरी दी जा रही हैं। विधवा पेशन, वृद्धावस्था पेंशन में हर मार कई हजार करोड़ का खर्च हो रहा है। सरकारी रोडवेज की बसे बंद है, पर कर्मचारियों को सेलरी दी जा रही है। इतना ही नहीं कोरोना के सभी मरीजों का इलाज और जांच भी मुफ्त हो रही है। गरीबों को राशन मुफ्त या कंट्रोल से कम दामों पर उपलब्ध कराया जा रहा है। सरकार के जितने भी इनकम सोर्स है अभी एक तरह से बंद है। अलग-अलग तरीके के जो टैक्स व्यापारी भरते है उर्न्हें भी आगामी कुछ महीनों तक टाल दिया गया हैं।

ऐसे ही संकट के समय में चीन, नेपाल और पाकिस्तान के साथ युद्ध के मोर्चे खुल गए हैं जिसके लिए सैन्य तैयारी चल रही है, युद्ध हुआ तो पैसा क्या बहुत कुछ बलिदान करना पड़ेगा। एक समय था जब माँ-बहनों ने अपने गहनें बेचकर लड़ाई के लिए दान दिया था। लेकिन विचित्र स्थिति है कि संकट के ऐसे हालात में सरकार का साथ देने के बाद आज की पीढ़ी महज पैट्रोल पदार्थो पर कुछ रूपए बढ़ने के बाद सरकार के खिलाफ ऐसी खिलाफत कर रही है मानों सरकार अपना खजाना भरने के लिए ये सब कर रही है। नौजवान पीढी और देश के लोगों को क्या हो गया है, क्या उन्हें देश के प्रति अपनी निष्ठा और कर्तव्य दिखाई नहीं पड़ रहे हैं?


सवाल ये है कि संकट के इस वक्त में पैसा आएगा कहां से। सरकार ने अगर पेट्रोल, डीजल पर अगर थोडा टैक्स बढा भी दिया तो कोई गलत काम तो नहीं किया। अभी और आज के हालात देखते हुए मध्यम वर्गीय परिवार पर मुस्किल से पूरे महीने के पेट्रोल पर 500 से 1000 रूपए का अतिरिक्त खर्चा आएगा। लेकिन सरकार विरोधी कुछ लोगों के बहकावे में आकर हम चीखना और चिल्लाना शुरू कर देते हैं। क्या केवल इसलिये कि पेट्रोल और डीजल के दामों पर मातम मनाना हमारी आदत हो चुकी है।

दरअसल, इसक सीधा लाभ भ्रष्ट राजनीति करने वाले लोगों और दुष्प्रचार कर देश मे अराजकता व अशांति फैलाने वाले लोगों के राजनीतिक एजेंडे को इससे बल मिलता है। इस मूल्य वृद्धि के प्रलाप को उनके ही एजेंडे के तहत बढाया जाता है। संकट के इस दौर में अपनी रक्षा तैयारियों को मजबूत करने तथा कोरोना महामारी से लडने के लिए सरकार जो कुछ कर रही है उसमें कुछ योगदान देश की जनता को भी करना चाहिए। इसलिए ऐसे कठिन वक्तर में पैट्रोल जैसी गैर जरूरी चीज पर बढ़े मामूली दाम के लिए हमें अपनी ही सरकार को कठघरे में खडा करके दुश्म न के इरादों को ओर मजबूत करने से बचना चाहिए। क्यौ एक गूंगे अर्थशास्त्री के शब्दों में पैसे पेड़ों पर नहीं उगते। यानि पैसा किसी को तो चुकाना ही होगा

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