राज्य

पत्रकारों के वेतन कटौती और छंटनी के खिलाफ दस मीडिया समूहों को बॉम्बे हाईकोर्ट का नोटिस

बंबई। बॉम्बे हाई कोर्ट ने आज केंद्र, राज्य और दस मीडिया हाउसों को कोविड-19 महामारी के दौरान पत्रकारों / गैर-पत्रकार कर्मचारियों पर वेतन में कटौती करने के “गैरकानूनी और मनमानी” आदेशों के विरुद्ध नोटिस जारी करके जवाब तलब किया है।

न्यायमूर्ति एसबी शुकरे और न्यायमूर्ति ए एस किलोर की पीठ ने जनहित याचिकाओं पर कर्मचारियों की छंटनी या उनका वेतन काटने से रोकने के लिए मीडिया समूहों को निर्देश देने की मांग वाली याचिका पर सभी उत्तरदाताओं को नोटिस जारी किया और चार सप्ताह में जवाब मांगा है। पीठ महाराष्ट्र यूनियन ऑफ़ वर्किंग जर्नलिस्ट्स और नागपुर यूनियन ऑफ़ वर्किंग जर्नलिस्ट्स द्वारा दायर जनहित याचिका पर सुनवाई कर रही थी।

याचिकाकर्ताओं ने केंद्र सरकार और महाराष्ट्र राज्य के अलावा, इंडियन न्यूज़पेपर सोसाइटी, विदर्भ दैनिक समाचार पत्र, लोकमत मीडिया, टाइम्स ऑफ़ इंडिया / महाराष्ट्र टाइम्स, दैनिक भास्कर, सकाल मीडिया, इंडियन एक्सप्रेस / लोक सत्ता, तरुण भारत, नवभारत मीडिया समूह, देशोन्नति समूह और पुण्य नगरी समूह को मामले में उत्तरदाता बनाया है। एमयूडब्लूजे के लिए वकील श्रीरंग भंडारकर, एनयूडब्लूजे के लिए वकील मनीष शुक्ला, केंद्र के लिए एडिशनल सॉलिसिटर जनरल यूएम औरंगाबादकर और राज्य के लिए सरकारी वकील एसवाई देवपुजारी सुनवाई के दौरान उपस्थित हुए।

याचिका के अनुसार कोरोना के संकट काल में ऐसे समय में प्रधानमंत्री द्वारा कर्मचारियों को आजीविका से वंचित ना करने की अपील और मार्च में श्रम मंत्रालय की एडवाइजरी नजरअंदाज करते हुए पत्रकारों को एकतरफा बर्खास्त किया जा रहा है, इस्तीफा देने के लिए मजबूर किया गया है, सेवा शर्तों में बदलाव के लिए तैयार किया जा रहा है, वेतन कटौती के लिए मजबूर किया जा रहा है और सेवा की स्थिति में परिवर्तन को स्वीकार करने के लिए मजबूर किया गया है। वेतन आयोग को पूरी तरह अप्रासंगिक किया जा रहा है। नियमित या स्थायी कर्मचारियों को कांट्रेक्ट(सीटीसी) में परिवर्तित किया जा रहा है । इसके अलावा, समाचार पत्रों के प्रबंधन की ओर से से कर्मचारियों बर्खास्त करने, दूरदराज के स्थानों पर स्थानांतरण आदि की धमकी दी जा रही है।

याचिकाकर्ताओं ने प्रतिवादी मीडिया समूहों के लिए काम करने वाले कर्मचारियों की छंटनी और वेतन कटौती के विशिष्ट उदाहरणों का भी उल्लेख किया है। याचिका में कहा गया है कि नियोक्ताओं / समाचार पत्रों के मालिकों का यह कार्रवाई अमानवीय और गैरकानूनी है तथा भारत के संविधान के अनुच्छेद 14, 19 और 21 के तहत मिले अधिकारों का उल्लंघन है। याचिका में कहा गया है कि कोरोनावायरस महामारी संकट की आड़ में वे नियमित पत्रकार / गैर-पत्रकार कर्मचारियों की सेवा की शर्तों को बदल रहे हैं और उन्हें अनुबंध (कॉस्ट टू कंपनी) के आधार पर फिर से नियुक्त करने की पेशकश कर रहे हैं।

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button
WP2Social Auto Publish Powered By : XYZScripts.com