दिल्ली। आज कोरोना संकट के इस दौर में दुनिया के कई देश विश्व स्वास्थ्य संगठन की कार्यशैली पर सवाल उठा रहे हैं, वहीं कोरोना वायरस के भयावह स्वरूप से बचने के लिए सम्पूर्ण विश्व को भारत एक आशा की किरण के रुप में दिखाई दे रहा है। भारत में बनी हाइड्रोक्सीक्लोरोक्वीन दवा की मांग काफी बढ़ गई है। लेकिन पश्चिमी देशों की दावा कंपनियां इससे काफी परेशान है। वे विश्व स्वास्थ्य संगठन पर दबाव बनाकर हाइड्रोक्सीक्लोरोक्वीन दवा के ट्रायल को रोकने की साजिश कर रही है। इसको देखते हुए भारत ने भी WHO के खिलाफ मोर्चा खोल दिया है।
पश्चिमी देशों की दवा कंपनियों की साजिश
केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय के एक अधिकारी ने बताया कि दरअसल ज्यादातर पश्चिमी देशों के वैज्ञानिक और दवा कंपनियां भारत के बेहद सस्ती दवाओं के उपचार को लेकर हमेशा नीचा दिखाने की कोशिश में रहती हैं। कोरोना वायरस का इलाज मलेरिया से बचाव के लिए बनी हाइड्रोक्सीक्लोरोक्वीन से संभव है। अगर कोरोना वायरस से बचाव के लिए इस सस्ती दवा का उपयोग बढ़ जाए तो पश्चिमी देशों की दवा कंपनियों को करोड़ो रुपयों के नुकसान है। यही कारण है कि इनकी लॉबी साजिश के तहत WHO पर दबाव बनाकर हाइड्रोक्सीक्लोरोक्वीन के सभी ट्रायल बंद करना चाहती हैं। इसका भारत ने विरोध कर दिया है।
भारतीय वैज्ञानिकों ने WHO के दावे को किया खारिज
हाल ही में पश्चिमी देशों की दवा कंपनियों के दबाव में WHO ने सदस्य देशों को निर्देश जारी किया था कि कोरोना वायरस के इलाज में हाइड्रोक्सीक्लोरोक्वीन खतरनाक साबित हो सकती है। इसीलिए इसके ट्रायल बंद कर दें। लेकिन भारतीय वैज्ञानिकों ने न सिर्फ इस दवा पर शोध किया बल्कि देश के डाक्टरों से कहा है कि कोरोना वायरस इलाज में इस दवा से बचाव हो सकता है। इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च (ICMR) ने अपने ताजा शोध में कहा है कि हाइड्रोक्सीक्लोरोक्वीन की दवा लेने पर कोरोना वायरस संक्रमण के खतरे में कमी देखी गई है।
कोरोना से अकेले लड़ेगा भारत
भारत ने अपने नए निर्देश और शोध से WHO को संकेत दिया है कि कोरोना के खिलाफ जंग में अब देश अकेले ही चलेगा। देशहित में जो शोध और इलाज जरूरी होगा, उसे खुद करेगा। उसे WHO के सुझाव को कोई जरूरत नहीं है। वहीं केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री डॉ. हर्षवर्धन ने WHO के कार्यकारी बोर्ड के अध्यक्ष का कार्यभार संभाल लिया है। ऐसे में हाइड्रोक्सीक्लोरोक्वीन दावा के खिलाफ चल रही अंतर्राष्ट्रीय साजिश से निपटने में भारत को काफी मदद मिल सकती है।
ट्रंप ने उठाया WHO की भूमिका पर सवाल
कोरोना वायरस संक्रमण को फैलाने में WHO पर आरोप लगते रहे हैं। खुद अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने भी WHO की भूमिका पर सवाल उठाए हैं। अमेरिका ने WHO को चीन की कठपुतली बताते हुए उससे सारे रिश्ते तोड़ लिए हैं। ट्रंप ने कहा है कि चीन हर साल सिर्फ चार करोड़ डॉलर WHO को देता है। जबकि अमेरिका हर साल 45 करोड़ डॉलर डब्ल्यूएचओ को देता है। इसके बावजूद डब्ल्यूएचओ में चीन का नियंत्रण है और उसकी मनमर्ज़ी चलती है।
WHO के खिलाफ नाराजगी
हालांकि ये बात जगजाहिर भी रही है कि WHO में कई दवा निर्माता कंपनियां भी अलग अलग तरीके से दबाव बनाने की कोशिशें करती रही हैं। यही कारण है कि इन दिनों WHO के ज्यादातर सोशल मीडिया पोस्ट पर लोगों का गुस्सा नजर आने लगा है।
55 से अधिक देशों में की जा रही है दवा की आपूर्ति
आपको बता दें कि कोरोना को मात देने में सक्षम समझी जाने वाली दवा हाइड्रोक्सीक्लोरोक्विन (एचसीक्यू) की आपूर्ति को लेकर भारत अभी दुनिया का सबसे अग्रणी देश बन गया है। अभी 55 से अधिक देशों ने भारत से इस दवा को खरीदने का आग्रह किया है। अमेरिका, ब्रिटेन जैसे शक्तिशाली देश भारत से इस दवा को खरीद रहे हैं, लेकिन गुआना, डोमिनिक रिपब्लिक, बुर्कीनो फासो जैसे गरीब देश भी हैं, जिन्हें भारत अनुदान के तौर पर इन दवाओं की आपूर्ति करने जा रहा है। भारत डोमिनिकन रिपब्लिक, जांबिया, युगांडा, बुर्कीना फासो, मेडागास्कर, नाइजर, मिस्र, माली कॉन्गो, अर्मेनिया, कजाखिस्तान, जमैका, इक्वाडोर, यूक्रेन, सीरिया, चाड, फ्रांस, जिंबाब्वे, जॉर्डन, केन्या, नाइजीरिया, नीदरलैंड्स, पेरू और ओमान को दवाएं भेज रहा है। साथ ही, फिलिपींस, रूस, दक्षिण अफ्रीका, तंजानिया, स्लोवानिया, उज्बेकिस्तान, कोलंबिया, संयुक्त अरब अमीरात (यूएई), उरुग्वे, बहामास, अल्जीरिया और यूनाइटेड किंगडम (यूके) को भी मलेरिया रोधी गोलियां भेजी जा चुकी हैं।