कर्मवीर नागर प्रमुख
आजादी के बाद से देश के आखिरी पंक्ति में खड़े व्यक्ति की चिंता अब तक की सभी सरकारें करती आई हैं । आर्थिक दृष्टि से आखिरी पंक्ति में खड़े व्यक्ति के लिए देश में योजना आयोग से लेकर देश और प्रदेश के विभिन्न मंत्रालयों द्वारा कल्याणकारी योजनाएं बनाकर आर्थिक उत्थान के लिए 73 वर्षों से काम होता आ रहा है । देश और प्रदेश मे जब भी चुनाव आते हैं तब सभी राजनीतिक दल देश के जवान, किसान और मजदूर का नारा देकर इनके उत्थान के लिए बड़े-बड़े सब्जबाग दिखाते नजर आते हैं । देश और प्रदेशों की सरकारें अखबारों में बड़े-बड़े इस्तहार और टीवी चैनल्स पर विज्ञापन देकर इस आखिरी पंक्ति में खड़े व्यक्ति को आगे लाने के लिए बनाई गई तमाम कल्याणकारी एवं विकास योजनाओं का प्रचार प्रसार करते नहीं थकते । अरबों रुपए का बजट खर्च महज उन विज्ञापनों पर होता है जिसमें गरीब के चेहरे पर मुस्कान दिखाई जाती है ।
लेकिन देश में आई वैश्विक महामारी के संकट ने देश और समाज के आखिरी पंक्ति के व्यक्ति के लिए सत्तासीन सरकारों द्वारा अब तक किए गए कार्यों की मानो जैसे पोल खोल कर रख दी है । समाज के आर्थिक रूप से सबसे निचले पायदान पर खड़े व्यक्ति के लिए देश की आजादी के बाद से इन 73 वर्षों में क्या हुआ ? काफी हद तक यह सच आज हम सब लोगों को सड़क पर पैदल चलते लोगों के रूप में और लॉक डाउन की अवधि के दौरान घर में 15 दिन का आटा दाल भी उपलब्ध न होने की वजह से खाद्य सामग्री के लिए लोगों की लंबी-लंबी कतार बद्ध तस्वीरों के रूप में देखने को मिला। शायद इस देश की सत्ता और सरकारों को सही आंकड़ों की उपलब्धता न होने की वजह से अनछुए पहलुओं तक नहीं पहुंचा गया है लेकिन आखिरकार इस सब के लिए उत्तरदायित्व तो सत्तासीन सरकार का ही होता है। आंकड़ों की जादूगरी की यह इस उसी तरह की सच्चाई है जैसे कि देश में माननीय प्रधानमंत्री जी गरीब लोगों के घर घर में विद्युत प्रकाश पुंज पहुंचाने की महत्वाकांक्षी योजना चलाते हैं और 15 अगस्त को लाल किले की प्राचीर से योजना की सफलता पूर्वक पूरे होने की घोषणा भी करते हैं लेकिन अगले ही दिन मीडिया अलीगढ़ के निकट नंगला नामक किसी गांव की सच्चाई टीवी चैनल्स पर प्रसारित कर देता है । ऐसे में अभी विश्व की महाशक्ति बनने का सपना देख कर प्रसन्न होना खुद को अंधेरे में रखने के समान है । आर्थिक रूप से अंतिम पंक्ति में खड़े देश के उस व्यक्ति के साथ बेमानी होगी जिस के उत्थान के लिए धरातल पर योजनाओं की अभी बहुत जरूरत है बाकी हैं।
कोरोना संकट से निजात पाने के बाद सरकार के सामने सबसे बड़ा पहला गहन संकट आर्थिक मोर्चे को जीतना होगा और दूसरा महत्वपूर्ण काम देश में आखिरी पंक्ति में खड़े उस व्यक्ति की चिंता करना होगा जो आज भी उसी जगह खड़ा नजर आ रहा है जहां वह 73 वर्ष पहले खड़ा था । इसके लिए उन तमाम योजनाओं और तथ्यों को फिर से खंगाल कर कायाकल्प करना होगा। जिस वजह से अंतिम पायदान पर खड़ा व्यक्ति आज भी अंतिम पायदान पर ही खड़ा नजर आ रहा है । क्योंकि अंतिम पायदान पर खड़े व्यक्तियों का भारी जनसमूह इस देश की जनता ने इस वक्त अपनी आंखों से देखा है । जिसका चेहरा आर्थिक रूप से अभी भी उतना ही वीभत्स नजर आया है जैसा कि देश के बंटवारे के वक्त था।
अब तक की इन सारी व्यवस्थाओं को देखकर ऐसा प्रतीत होता है कि हम चिंता तो जाहिर समाज के अंतिम पायदान पर खड़े व्यक्ति की करते हैं लेकिन असली चिंता पंक्ति में खड़े उस प्रथम व्यक्ति की ही करते हैं जो पूरी तरह से साधन संपन्न है । जैसा कि पिछले दिनों देखने को भी मिला सरकार को उन साधन संपन्न लोगों को जहाज से लाने की चिंता पहले थी जो बदकिस्मती से इस वैश्विक महामारी को भी साथ लेकर आए। लेकिन उस गरीब व्यक्ति की चिंता उतनी नहीं थी जो भूखे प्यासे पैदल ही लंबा सफर तय करते हुए अपने गंतव्य के लिए निकल पड़ा था। मेरा यह सब बताने के पीछे मकसद किसी पर आरोप प्रत्यारोप करना कतई नहीं है बल्कि एक शुभचिंतक के नाते देश की सत्ता और सरकार को सच्चाई का आइना दिखाना जरूर है । क्योंकि गलत आंकड़े और तथ्यों के आधार पर योजनाओं के सृजन से इस देश के गरीब व्यक्ति को अगली पंक्ति में ले जाना मुश्किल भरा काम होगा। अंतिम पायदान पर खड़े व्यक्ति के उत्थान के लिए देश की सरकारों को युद्ध स्तर पर काम करना होगा । सच्चाई तो यह है कि जब तक इस गरीब व्यक्ति को इस देश में रोजगार मुहैया नहीं होगा तब तक मुफ्त की खैरात बांटने से कभी भी इस गरीब के स्तर में सुधार हो पाना संभव नहीं होगा ।
जैसा कि अभी तक के हालातों को देखकर लग रहा है कि इस वैश्विक बीमारी से निजात पाना चंद दिनों का काम नहीं है। ऐसे में सरकार को दूसरे प्रदेशों के प्रवासी ऐसे गरीब तबके के लोगों को इनके घर तक पहुंचाने का काम भी उसी तरह से करना चाहिए जिस तरह से उन्हें खाद्य सामग्री और तमाम आवश्यक जीवनदायी सुविधाएं उपलब्ध कराने के लिए शासन प्रशासन दिन-रात जुटा हुआ है। क्योंकि यह वह गरीब लोग हैं जो किसी कोठी, बंगले अथवा निजी फ्लैट में नहीं रहते हैं बल्कि छोटे-छोटे कमरों में कई कई लोग रह कर अपना गुजारा चलाते हैं। सरकार को चाहिए कि ऐसे लोगों को चिन्हित कराने का काम करें जो अपने गांव देहात वापिस अपने परिवार के पास लौटना चाहते हैं । यह गरीब लोग अपने परिवार के लिए चिंतित हैं और इनके दूरदराज बसे परिवारों को दिन रात इनकी चिंता सता रही है । इसी वजह से कई बार अफरा तफरी का माहौल भी देखने को मिलता है । ऐसे लोगों को चिन्हित करते हुए गणना करके विशेष ट्रेन चलाकर गंतव्य तक पहुंचाना ही इस समय आखिरी पंक्ति में खड़े व्यक्ति के लिए और सरकार दोनों के लिए हितकर होगा ।