नई दिल्ली: कोरोना संक्रमण के मामले भारत में तेजी से बढ़ते जा रहे हैं. देश में कोरोना पॉजिटिव मरीजों की संख्या 12 हजार के करीब पहुंच गई है जबकि इससे 392 लोगों की मौत हो चुकी है. डॉक्टर से लेकर स्वास्थ्य कर्मी तक अपनी जान को जोखिम में डालकर देशवासियों की जान बचाने में जुटे हैं. इसके बावजूद स्वास्थ्य विभाग और पुलिस टीम पर बुधवार को मुरादाबाद में लोगों ने हमला कर दिया, जिसमें डॉक्टर समेत सात लोग घायल हुए हैं.
मुरादाबाद ही नहीं बल्कि इंदौर, मेरठ सहित कई शहरों में हुए हमलों के बाद सवाल उठने लगे हैं कि कोरोना संक्रमण के खतरे के बीच देश में एक के बाद एक शहर में स्वास्थ्य विभाग की टीम पर आखिर हमले क्यों हो रहे हैं? मुस्लिम समुदाय के बीच कैसा भ्रम और भय है, जिसकी वजह से उन्हें डॉक्टरों की टीम पर भरोसा नहीं रहा और वो हमले और पथराव कर रहे हैं. इन्हीं सारे सवालों के जवाब को तलाशने के लिए aajtak.in ने मुस्लिम उलेमा और बुद्धजीवियों से बात की, जिसमें एक बात साफ निकलकर आई की शिक्षा के अभाव और सरकार पर अविश्वास के चलते ऐसी घटनाएं हो रही हैं.
लखनऊ विश्वविद्यालय के प्रोफेसर हिलाल अहमद ने कहा- मुस्लिम समुदाय में दुनियावी शिक्षा और साइंटिफिक टेम्परामेंट की कमी है. इसी अभाव की वजह से न तो वे कोरोना संक्रमण के खतरों को समझ पा रहे हैं कि वो अपने आपको, अपने परिवार को और मुल्क को कितना बड़ा नुकसान पहुंचा रहे हैं. इन हरकतों से मुस्लिमों की छवि को भी बिगाड़ रहे हैं. इन लोगों के पास दीनी तालीम की भी कमी है, वरना दुनिया भर के उलेमा लगातार कह रहे हैं कि इस तरह बीमारियों के दौरान खुद को सबसे अलग कर लो.
वो कहते हैं कि मुस्लिम समुदाय में इस्लाम की बेहतर तालीम न पहुंचने की वजह ये है कि हमारे यहां जो उलेमा है वो अमूमन मदरसों से निकल कर आए हैं, उनके अंदर दुनियावी शिक्षा की कमी है और जो दीनी तालीम है वो भी पूरी तरह से मुकम्मल नहीं है. ऐसे में उलेमा आधी कच्ची-आधी पक्की जानकारी दे रहे हैं और समाज को सही गाइडेंस नहीं मिल पा रही है, जिसकी वजह से मुस्लिम बस्तियों में ऐसी घटनाएं होती हैं और पूरे समाज को शर्मसार होना पड़ता है.
हिलाल अहमद कहते हैं कि एनआरसी, एनपीआर और सीएए जैसे मुद्दों ने मुस्लिम समुदाय के ऊपर मनोवैज्ञानिक तौर पर असर डाला है कि सरकार उनकी नागरिकता छिनना चाहती है. इसकी वजह से मुस्लिमों में सरकार के प्रति अविश्वास पैदा हुआ है. इसके अलावा हाल ही में जिस तरह तबलीगी जमात की घटना के बाद कोरोना को मुस्लिम समुदाय के साथ जोड़ दिया गया, उसने मुस्लिम समुदाय के बीच सरकार को लेकर विश्वास को और भी कमजोर कर दिया है. सरकार ने भी उनके अविश्वास को खत्म करने की बजाय अड़ियल रुख अपनाया, जिसके वजह से मुस्लिम समुदाय को लगता है कि यह सब षड्यंत्र है और उन्हें बदनाम करने के लिए किया जा रहा है. ऐसे में सरकार उन्हें भरोसा दिलाए कि आपके साथ कुछ गलत नहीं होगा.
जमियत उलेमा-ए-हिंद के महासचिव नियाज फारूकी ने कहा कि इसे हिंदू-मुस्लिम की तरह से मत देखिए. ऐसी घटनाएं हर जगह और हर समुदाय के बीच हो रही हैं. कोरोना संक्रमण के खतरे के बीच लोग यह महसूस कर रहे हैं कि उन्हें गिरफ्तार किया जा रहा है और क्वारनटीन या फिर जेल में रखा जाएगा. इसके अलावा पुलिस की ज्यादती के मामले भी सामने आए हैं, जिसकी वजह से लोगों में संदेह पैदा हो रहा है. इसीलिए लोग क्वारनटीन में जाने से डर रहे हैं. आज माहौल वैसा ही बन गया है जैसे आपातकाल के समय लोग पुलिस को देखकर भागते थे कि उन्हें ले जाकर नसबंदी कर देंगे.
राज्यसभा सांसद जावेद अली कहते हैं कि मुस्लिम समुदाय में पढ़ाई-लिखाई की बहुत कमी है, जिसकी वजह से वो अपना और दूसरों का भला बुरा समझ नहीं पा रहे हैं. इसी के चलते कोरोना संक्रमण के खतरों की गंभीरता को नहीं समझ पा रहे हैं. इसके अलावा दूसरी सबसे बड़ी वजह ये है कि मौजूदा जो सिस्टम है उसके प्रति भी मुस्लिमों में विश्वास की कमी है. लॉकडाउन की वजह से लोग अपने-अपने घरों में बंद हैं ऐसे में लोग कैसे उनके बीच जाकर उन्हें जागरुक करें ये भी बड़ी चिंता है. हालांकि, हम यही कहेंगे कि मुस्लिम समुदाय में भी जो लोग हैं वो डाक्टरों की मदद करें और इस बात को समझें कि वो आपकी जान बचाने के लिए ही आए हैं.
राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग के सदस्य आतिफ राशीद ने कहा कि मुस्लिम समुदाय इस बात को समझ नहीं रहे हैं कि कोरोना के चलते भारत ही नहीं पूरी दुनिया में कितना बड़ा खतरा है. वो किसी दूसरे को नुकसान करने से पहले अपने और परिवार की जान को जोखिम में डाल रहे हैं. मुस्लिम समुदाय के इलाकों में भी लॉकडाउन का पालन वैसे नहीं हो रहा है जैसा कि होना चाहिए. ऐसे में प्रशासन और समुदाय के रहनुमाओं को चाहिए कि वो आगे आएं और लोगों को प्रेरित करें कि वो खुद से बाहर निकलें और अपनी जांच कराएं. इसमें मौलाना साद जैसे लोगों को वीडियो जारी करना चाहिए कि तबलीगी जमात सहित मुस्लिम समुदाय के लोग जाने और अनजाने में किसी भी कोरोना संदिग्ध के करीब आए हैं वो प्रशासन के पास जाकर बताएं और अपनी जांच कराएं.
मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के सदस्य कमाल फारूकी कहते हैं कि इसे हिंदू-मुस्लिम के तौर पर नहीं देखा जाना चाहिए. लॉकडाउन के बीच इस तरह की घटनाएं देश भर में हो रही हैं, सरकार उनकी समस्याओं को न समझ रही है और न ही उन्हें कोई राय दे रही है. मुस्लिम समुदाय के बीच स्वाभाविक तौर पर शिक्षा की कमी है, जिसकी वजह से कुछ जगह गलतफहमी में ऐसी घटनाएं हुई हैं जिससे हम शर्मिंदा हैं. खासकर कोरोना संक्रमण के बीच जिस तरह से डॉक्टर और मेडिकल क्षेत्र में लगे लोग तो हमारे लिए मसीहा हैं, इनके साथ किसी तरह के कोई गलत व्यवहार को जायज नहीं ठहराया जा सकता है.