नई दिल्ली। दिल्ली विधानसभा का चुनाव प्रचार अब अपने अंतिम दौर में है। बीते दो हफ्ते में राजधानी के सियासी परिस्थितियों में अचानक आए बदलाव ने सियासी समीकरण को उलझा कर रख दिया है। अंतिम दौर में बदली परिस्थितियों में सभी दल अपनी अपनी रणनीति में बदलाव पर मजबूर हुए हैं। आप का चेहरा अरविंद केजरीवाल विक्टिम कार्ड खेल रह हैं तो भाजपा पहले की तुलना में ज्यादा आक्रामक हुई है। अब तक शांत दिख रही कांग्रेस ने भी अचानक तेवर दिखाने शुरू किए हैं।
अब जबकि चुनाव प्रचार खत्म होने में महज 96 घंटे बचे हैं, तब सियासी दलों ने चुनाव प्रचार तेज करते हुए बदली सियासी परिस्थितियों में अपनी रणनीति का नए सिरे से आकलन शुरू किया है।
मसलन शाहीन बाग आंदोलन की खिलाफत कर अपने कोर वोटर को साध चुकी भाजपा की निगाहें कांग्रेस के प्रदर्शन पर है। जबकि आप और कांग्रेस की निगाहें जनादेश की चाबी हाथ में रखने वाली मुस्लिम-दलित (29 फीसदी) के रुख पर है।
शाहीन बाग
इस मुद्दे ने अचानक चुनाव की हवा बदल दी। शुरुआती दौर में आप अपने मुफ्त बिजली-पानी-सफर योजना के कारण बहुत आगे थी। इसी बीच भाजपा के आक्रामक प्रचार से चुनाव में सीएए के खिलाफ शाइन बाग में हो रहा धरना चुनाव प्रचार का मुख्य केंद्र बन गया। इस मुद्दे ने निश्चित रूप से भाजपा को मजबूती दी है। मगर सवाल यह है कि इसकी प्रतिक्रिया में मुस्लिम बिरादरी एकजुट हो कर वोट करेगी या बंट कर। अगर एकजुट होगी तो उसका वोट किसे जाएगा। जाहिर तौर पर अगर बंटी तो इसका लाभ भाजपा ले जाएगी।
भाजपा की उलझन
दिल्ली में भाजपा के कोर वोट 32 से 35 फीसदी हैं। शुरुआती दौर में ये वोट असमंजस में थे और पार्टी कार्यकर्ताओं में निराशा थी। हालांकि अमित शाह की आक्रामक प्रचार और शाइन बाग के मुद्दे के तूल पकडने के बाद माना जा रहा है कि भाजपा अपने कोर वोटरों को साधने में सफल रही है। मगर सवाल है कि इससे आगे क्या? क्या इसका असर उन मतदाताओं (फ्लोटिंग वोटर) पर भी पड़ा है जिसने उसे लोकसभा चुनाव में बढ़त दी थी? क्या कांग्रेस राज्य में बेहतर प्रदर्शन की स्थिति में है? अगर ऐसा नहीं है तो वर्ष 2015 की तरह भाजपा विरोधी वोट का आप के पक्ष में ध्रुवीकरण होगा।
आप की उलझन
अंतिम दौर में केजरीवाल को पार्टी में बौद्घिक ब्रिगेड की कमी खल रही होगी। विवाद और मतभेद के कारण कभी पार्टी को बौद्घिक रूप से मजबूती देने वाले चेहरे मसलन योगेंद्र यादव, प्रशांत भूषण, कुमार विश्वास, जस्टिस हेगड़े केजरीवाल का साथ छोड़ चुके हैं। खासतौर से शाहीन बाग पर हो रहे हमले का बौद्घिक स्तर पर बचाव करने वाला आप के पास कोई नेता नहीं है। पार्टी के पास केजरीवाल और मनीष सिसोदिया के अलावा कोई दूसरा चेहरा नहीं है। ऐसे में अगर मुस्लिम मतदाताओं में भ्रम की स्थिति बनी, झुग्गी और दलित वोट बंट गए तो आप को इसका सीधा खामियाजा भुगतना होगा।
कांग्रेस की उलझन
असरदार चेहरे का अभाव और गांधी परिवार की दिल्ली चुनाव से दूरी से कांग्रेस मजबूत संदेश नहीं दे पा रही। अंतिम समय में राहुल गांधी की रैलियों की चर्चा है। पार्टी ने केजरीवाल को शाइन बाग जाने की चुनौती दे कर अपनी उपस्थिति दर्ज कराने की कोशिश की है। इसके बावजूद संदेश यही है कि यहां मुकाबला भाजपा और आम आदमी पार्टी के बीच है।
ये अहम सवाल तय करेंगे जनादेश का रास्ता
- पीएम मोदी की अंतिम रैलियों का क्या पड़ेगा असर?
- शाइन बाग से निशाने पर आई मुस्लिम बिरादरी एकजुट या उलझन में?
- किसी के पक्ष में झुकेंगे या बंटेंगे दलित मतदाता?
- कितना काम आएगा केजरीवाल का विक्टिम कार्ड?
- राहुल की रैलियों से कितना मजबूत हो पाएगी कांग्रेस?