पटना। जेडीयू उपाध्यक्ष प्रशांत किशोर ने बीजेपी की मुश्किलें बढ़ाने वाला बयान दिया है. प्रशांत किशोर ने कहा है कि बिहार में जेडीयू-बीजेपी के बीच फिफ्टी-फिफ्टी का फॉर्मूला नहीं चलेगा, और जेडीयू को बिहार में बीजेपी के मुकाबले ज्यादा सीटों पर चुनाव लड़ना चाहिए.
बता दें कि लोकसभा चुनाव में दोनों पार्टियों ने लगभग बराबर-बराबर सीटों पर चुनाव लड़ा था. प्रशांत किशोर ने कहा है कि जेडीयू बिहार में सीनियर पार्टनर हैऔर आगामी विधानसभा चुनाव में पार्टी को बीजेपी के मुकाबले ज्यादा सीटों पर चुनाव लड़ना चाहिए.
लोकसभा चुनाव का फॉर्मूला विधानसभा में रिपीट नहीं
पटना में प्रशांत किशोर ने कहा कि लोकसभा चुनाव का फॉर्मूला विधानसभा में रिपीट नहीं किया जा सकता है. प्रशांत किशोर नागरिकता संशोधन कानून और राष्ट्रीय नागरिकता रजिस्टर के बहाने नरेंद्र मोदी सरकार पर लगातार हमला कर रहे हैं.
प्रशांत किशोर ने कहा, “यदि हम 2010 के विधानसभा चुनाव को देखें, जिसमें जेडीयू और बीजेपी साथ-साथ चुनाव लड़े तो सीट बंटवारे का अनुपात 1:1.4 था. अगर इस बार इसमें थोड़ा सा भी बदलाव होता है तो ऐसा नहीं हो सकता है कि दोनों पार्टियां बराबर सीटों पर चुनाव लड़े. प्रशांत किशोर ने कहा कि जेडीयू बड़ी पार्टी है, इसके लगभग 70 विधायक हैं, जबकि बीजेपी के पास लगभग 50 एमएलए हैं, इसके अलावा विधानसभा का चुनाव नीतीश कुमार के चेहरे पर लड़ा जाएगा.
झारखंड विधानसभा के नतीजों का असर
बता दें कि जेडीयू का ये स्टैंड झारखंड विधानसभा चुनाव के नतीजों के बाद देखने को मिला है. झारखंड विधानसभा चुनाव में अपनी सहयोगी AJSU से अलग होकर लड़ने का खमियाजा बीजेपी भुगत चुकी है. आंकड़े बताते हैं कि अगर बीजेपी और आजसू साथ चुनाव लड़ती तो झारखंड के नतीजे कुछ अलग हो सकते थे. जेडीयू उपाध्यक्ष ने इसी निष्कर्ष के आधार पर अभी से ही बीजेपी के खिलाफ प्रेशर पॉलिटिक्स पर काम करना शुरू कर दिया है. प्रशांत किशोर के बयान को इसी से जोड़कर देखा जा सकता है.
चुनावी रणनीतिकार प्रशांत किशोर ने इस बात को भी खारिज किया कि 2020 के विधानसभा चुनाव में नीतीश कुमार बीजेपी के पक्ष में कुछ सीटें छोड़ सकते हैं, जैसा कि उन्होंने 2015 में लालू यादव की राष्ट्रीय जनता दल के साथ किया था.
प्रशांत किशोर ने कहा, “दोनों परिस्थितियों की तुलना नहीं की जा सकती है, 2015 में जब चुनाव होने जा रहे थे तो उस वक्त की विधानसभा में जेडीयू के 120 विधायक थे, जबकि आरजेडी के मात्र 20 विधायक थे. लेकिन चूंकि महागठबंधन का प्रयोग एकदम नया था, इसलिए इसमें कई नई चीजें शामिल की गई थीं.