नई दिल्ली। जम्मू एवं कश्मीर प्रशासन ने कहा है कि इस केंद्र शासित क्षेत्र में अघोषित इमर्जेंसी नहीं है और ऐसा कोई आदेश नहीं दिया गया है जो इंडियन पीनल कोड के सेक्शन 144 के तहत लोगों को एक जगह इकट्ठा होने से रोकता हो। प्रशासन ने कहा है कि वहां के निवासियों को पहले से ‘ज्यादा अधिकार’ हासिल हैं और वे ‘पूरी तरह सामान्य जीवन’ जी रहे हैं।
केंद्र शासित प्रदेश की ओर से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने हालांकि सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस एन वी रमण, जस्टिस बी आर गवई और जस्टिस सुभाष रेड्डी की बेंच से हालांकि कहा कि इंटरनेट और टेक्स्ट मेसेजिंग सर्विसेज अभी बहाल नहीं की गई हैं, लेकिन ‘बाकी सारी सेवाएं’ चालू कर दी गई है। मेहता ने ये बातें उन याचिकाओं के जवाब में कहीं, जिनमें केंद्र शासित क्षेत्र में ट्रैवल, मूवमेंट, फ्री स्पीच और संचार पर पाबंदी को चुनौती दी गई है।
मेहता ने कहा कि किसी भी सरकार का बुनियादी दायित्व नागरिकों के जान-माल की रक्षा करना होता है। उन्होंने कहा, ‘नागरिकों के मौलिक अधिकारों पर अंकुश नहीं लगाया गया है।’ उन्होंने कहा कि वहां निवासियों को ज्यादा अधिकार दिए गए हैं। उन्होंने कहा कि यह केंद्र शासित प्रदेश सीमा पार से आतंकवाद का शिकार रहा है और इस पर फिजिकल और डिजिटल अटैक होता रहा है। मेहता ने कहा, ‘1990 से इस राज्य में करीब 71,038 लोगों की हत्याएं हुई हैं। ऐसी स्थिति 1947 से रही है। हमें स्थिति से आंख नहीं मूंदनी चाहिए। ऐसा करने से चंद लोगों को फायदा हुआ है।’
उन्होंने कहा कि संसद ने स्पेशल स्टेटस खत्म करने का निर्णय किया था। उन्होंने कहा कि किसी भी तरह की अशांति से बचने के लिए प्रतिबंध लगाए गए थे, लेकिन ‘सात जिलों में धारा 144 नहीं लगाई गई थी। अब हालात सामान्य हैं। एक भी गोली नहीं चली है। एक भी व्यक्ति की मृत्यु नहीं हुई है।’ मेहता ने भले ही ये दावे किए, लेकिन आधिकारिक आंकड़ा यह है कि पांच अगस्त से विरोध प्रदर्शनों के दौरान सशस्त्र बलों के एक्शन में चार नागरिकों की जान गई है। आतंकवादियों ने दो सुरक्षाकर्मियों, पांच स्थानीय लोगों और राज्य के बाहर के 12 लोगों की जान ली है।
मेहता ने कहा कि जम्मू कश्मीर को केंद्र शासित दर्जा देने के बाद 166 कल्याणकारी कानून वहां भी लागू हो गए। मेहता ने सेक्शन 144 या प्रतिबंध लगाने के आदेश के बारे में चर्चा करने से किनारा किया तो बेंच ने उनसे इस पर बाद में जानकारी देने को कहा। याचिकाएं दाखिल करने वालों ने दलील दी है कि केंद्र शासित प्रदेश के लोगों को यह जानने का हक है कि कौन से निर्णय किए गए थे और लोगों को अपने विचार रखने का अधिकार है। उनका कहना है कि सभी लोगों पर एकसमान लागू होने वाले आदेश मैजिस्ट्रेट लागू कर सकते हैं, लेकिन इस केंद्र शासित राज्य के मामले में ऐसा लग रहा है कि पुलिस अधिकारियों को यही आदेश दिया गया है कि धारा 144 लगा दी जाए।
सॉलिसिटर जनरल ने कहा कि पाकिस्तान की आईएसआई आतंकवादियों को भेज रही थी और अशांति फैलाने के लिए हुर्रियत को पैसा दे रही थी, लिहाजा असाधारण स्थिति बन गई थी। उन्होंने कहा, ‘सरकार ने जिस तरह स्थिति को संभाला है, उसके लिए उसकी प्रशंसा की जानी चाहिए।’