लखनऊ। मेरठ-दिल्ली एक्सप्रेसवे के लिए गाजियाबाद के चार गांवों में भूमि अधिग्रहण के लिए राष्ट्रीय राजमार्ग अधिनियम की धारा-3डी की अधिसूचना जारी होने के बाद किए गए बैनामे निरस्त कराने के लिए सरकार कानूनी कार्रवाई करेगी। मेरठ मंडल के तत्कालीन आयुक्त डॉ.प्रभात कुमार ने धारा-3डी की अधिसूचना के बाद प्रतिकर की दर बढ़ाने और बढ़ी दर से मुआवजा बांटने के लिए गाजियाबाद के तत्कालीन जिलाधिकारी विमल कुमार शर्मा और निधि केसरवानी समेत कई अधिकारियों-कर्मचारियों को जांच में दोषी पाया था। मंगलवार को कैबिनेट ने गाजियाबाद के इन दो पूर्व डीएम पर कार्रवाई को मंजूरी दी है। विमल कुमार शर्मा रिटायर हो चुके हैं जबकि निधि केसरवानी मणिपुर के अपने मूल कैडर वापस जा चुकी हैं।
कैबिनेट ने यह तय किया कि जांच में दोषी पाए गए गए किसी अधिकारी/कर्मचारी के खिलाफ यदि कार्रवाई नहीं की गई है तो उनके खिलाफ अनुशासनिक कार्रवाई की जाएगी। जिन अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई चल रही है, वह यथावत जारी रहेगी। जांच रिपोर्ट में डॉ.प्रभात कुमार ने मामले की सीबीआइ या किसी अन्य एजेंसी से उच्चस्तरीय जांच कराने की सिफारिश भी की थी। सीबीआइ या किसी अन्य एजेंसी से जांच के बारे में सरकार ने अभी कोई निर्णय नहीं किया है।
यह एक्सप्रेसवे 82 किलोमीटर लंबा है, जिसका निर्माण भारतीय राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण कर रहा है। एक्सप्रेसवे का 31.77 किमी हिस्सा गाजियाबाद में है। गाजियाबाद में परियोजना के लिए भूमि अधिग्रहण की खातिर राष्ट्रीय राजमार्ग अधिनियम, 1956 की धारा-3ए की अधिसूचना आठ अगस्त 2011 को जारी हुई। इस धारा के तहत भूमि अधिग्रहण का इरादा जताया गया। वहीं धारा-3डी के तहत भूमि को अधिगृहीत किए जाने की अधिसूचना 2012 में जारी की गई। अधिगृहीत की जाने वाली भूमि का अवार्ड 2013 में घोषित हुआ।
अवार्ड के खिलाफ गाजियाबाद के चार गांवों-कुशलिया, नाहल, डासना और रसूलपुर सिकरोड़ के किसानों ने आर्बिट्रेशन वाद दाखिल किये। 2016 और 2017 में तत्कालीन जिलाधिकारी/आर्बिट्रेटर ने नए भूमि अधिग्रहण अधिनियम के तहत जमीन के डीएम सर्किल रेट के चार गुणे की दर से मुआवजा देने के निर्णय किये। मामले की शिकायत होने पर तत्कालीन मंडलायुक्त डॉ.प्रभात कुमार ने इसकी जांच करायी। 29 सितंबर 2017 को शासन को सौंपी गई अपनी जांच रिपोर्ट में उन्होंने धारा-3डी की अधिसूचना के बाद जमीन खरीदने, आर्बिट्रेटर द्वारा प्रतिकर की दर बढ़ाने और बढ़ी दर से मुआवजा दिए जाने को गलत ठहराया। प्रतिकर की दर बढ़ाये जाने के कारण मुआवजे का वितरण नहीं हो पाया और जमीन का वास्तविक कब्जा नहीं मिल पाया। कब्जा न मिल पाने के कारण परियोजना का कार्य रुका है।
मंडलायुक्त मेरठ की जांच के दायरे में आने वाले चार गांवों की अर्जित भूमि (क्षेत्रफल 71.1495 हेक्टेयर) का शुरू में जब अवार्ड घोषित हुआ था तब मुआवजे के लिए कुल 111 करोड़ रुपये की धनराशि का आकलन किया गया था। आर्बिट्रेशन के तहत प्रतिकर की दरें बढ़ाये जाने से यह रकम अब 486 करोड़ रुपये हो गई। आर्बिट्रेशन के बाद 262 करोड़ रुपये मुआवजा बढ़ी दर से बांटा जा चुका है जबकि 71 करोड़ रुपये प्रतिकर बंटना बाकी है। वहीं 167 करोड़ रुपये मुआवजा अभी आर्बिट्रेशन के तहत लंबित है।
इस बारे में केंद्र सरकार के सड़क परिवहन एवं राजमार्ग मंत्रालय की ओर से बीती छह नवंबर को भेजे गए पत्र और महाधिवक्ता की कानूनी राय को देखते हुए दिल्ली-मेरठ एक्सप्रेसवे परियोजना के दायरे में आने वाले इन चारों गांवों केआर्बिट्रेशन अवार्ड के सापेक्ष प्रतिकर का वितरण किया जाना है।
घोटाले में एडीएम और अमीन हुए थे निलंबित
इस मामले में गाजियाबाद के तत्कालीन अपर जिलाधिकारी (भूमि अध्याप्ति) घनश्याम सिंह ने धारा-3डी की अधिसूचना के बाद नाहल गांव में अपने बेटे के नाम जमीन खरीदी और बाद में बढ़ी दर से मुआवजा हासिल किया। इसी तरह अमीन संतोष ने भी अपनी पत्नी व अन्य रिश्तेदारों के नाम जमीन खरीद कर ज्यादा प्रतिकर प्राप्त हुआ। जांच होने पर दोनों निलंबित किये गए थे।