दिल्ली

आयोनाईजेशन से दिल्ली-NCR के प्रदूषण पर वार करने पर विचार, जानें क्या है तकनीक

नई दिल्ली। दिल्ली-एनसीआर में प्रदूषण की परत को भेदने के लिए भविष्य में आयन (विद्युतीकृत अणु या परमाणु) का बाण छोड़ा जाएगा। भौतिकी और रसायन शास्त्र के फॉर्मूले पर ये आयन हवा में मौजूद प्रदूषक कणों को छंटने में मदद करेंगे। इस प्रक्रिया के जरिये कमरे के भीतर व बाहर दोनों ही जगहों के वायु प्रदूषण पर वार किया जाएगा। कुछ देशों में कामयाब रही इस तकनीक पर दिल्ली में प्रयोग किया गया है। अब इससे मिले आंकड़ों का अध्ययन किया जा रहा है और जल्द ही इसके नतीजों की रिपोर्ट भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आइआइटी) केंद्र सरकार के साथ साझा करेगा। इसके बाद केंद्र की संस्तुति से इसे दिल्ली-एनसीआर में लागू किया जाएगा।

सीपीसीबी और आइआइटी दिल्‍ली मिलकर कर रहे काम

केंद्रीय विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी मंत्रालय की आयोनाईजेशन यानी आयनीकरण से प्रदूषण पर वार करने की योजना है। मंत्रालय ने केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) को इसपर काम करने के लिए निर्देशित किया है। सीपीसीबी ने इसके लिए आइआइटी दिल्ली से करार किया है। आइआइटी दिल्ली के वैज्ञानिक अब आयोनाईजेशन पर अपने सोनीपत केंद्र में प्रयोग कर रहे हैं। इस वर्ष अप्रैल-मई से लेकर अक्टूबर तक इसपर अध्ययन किया गया है और अब इसपर रिपोर्ट तैयार की जा रही है।

ऐसे करेगा काम

जब किसी ऊष्मा के सुचालक पर हाईवोल्टेज में करंट पास किया जाता है तो उसके सिरे से इलेक्ट्रॉन बाहर निकलते हैं। ये जब किसी कमरे में छोड़े जाते हैं तो दीवारों, छत, खिड़की, दरवाजों के आसपास हवा में मौजूद प्रदूषक कणों से टकराते हैं। इससे प्रदूषण के कण छंटने लगते हैं, जिससे हवा कुछ बेहतर होने लगती है। जब यह आयन किसी बाहर के हिस्से में छोड़े जाते हैं तो वातावरण में मौजूद पानी की बूंदों को संघनित कर देते हैं, जिससे ऊष्मा निकलती है और हवा की लहर पैदा होती है। इसके प्रभाव से प्रदूषक कण छंटने लगते हैं।

दुबई, मैक्सिको और रूस में अपनाई जा रही यह तकनीक

प्रदूषण कम करने के लिए इस तकनीक का सफल प्रयोग दुबई और मैक्सिको में किया गया है। रूस में भी इसका इस्तेमाल हो रहा है। छोटे स्तर पर भारत में भी एयर प्यूरीफायर में इस तकनीक का प्रयोग होता रहा है, लेकिन बड़े पैमाने पर पहली बार इस पर प्रयोग किया जा रहा है। मंत्रालय के ही अधीन विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी पार्क पुणे ने एक बड़ा आयोनाइजर तैयार किया है। इसी के माध्यम से आइआइटी के वैज्ञानिक इस पर अध्ययन कर रहे हैं। हालांकि, अभी यह प्रायोगिक स्तर पर ही है।

यह है भविष्य की योजना

जिस आयोनाइजर पर प्रयोग किया जा रहा है, उसका प्रभाव दो किलोमीटर तक के क्षेत्र पर होने की संभावना जताई जा रही है। अध्ययन में सफलता मिलने की स्थिति में इससे बड़े आकार के आयोनाइजर भी बनाए जा सकते हैं। सकारात्मक रिपोर्ट सामने आने पर दिल्ली-एनसीआर के तमाम प्रमुख स्थानों पर ये आयोनाइजर लगाए जाने की योजना है। इनके जरिये सर्दियों में प्रदूषण पर तब वार किया जाएगा, जब हवा की गति कम होने और नमी बढ़ने पर उसमें प्रदूषक कण जमने लगते हैं।

आयोनाईजेशन पर आइआइटी दिल्ली के विशेषज्ञ सोनीपत कैंपस में प्रयोग कर रहे हैं। करीब छह माह तक के प्रयोग और आंकड़ों पर अब इसका परिणाम तैयार किया जा रहा है। इसके आधार पर ही आगे की कार्ययोजना तैयार की जाएगी। –एसपीएस परिहार, चेयरमैन, सीपीसीबी

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