नई दिल्ली। तीस हजारी कोर्ट में शनिवार को वकीलों और पुलिस के बीच हुई हिंसक झड़प के परिणाम सोमवार को भी देखने को मिले. दिल्ली की सभी जिला अदालतों में वकील हड़ताल पर चले गए. सिर्फ जिला अदालत में ही नहीं बल्कि दिल्ली हाई कोर्ट में भी वकील जज के सामने पेश नहीं हुए. इतना ही नहीं हड़ताल के दौरान वकीलों ने न सिर्फ सड़कों पर प्रदर्शन कर आम लोगों को रोककर ट्रैफिक जाम किया बल्कि पत्रकारों और आम लोगों के साथ मारपीट भी की. इस बीच साकेत कोर्ट के पास वकीलों ने एक पुलिसवाले की पिटाई कर दी.
पुलिसवाले को हेलमेट चलाकर मारा
साकेत कोर्ट के पास वकीलों ने एक दिल्ली पुलिस के जवान की पिटाई कर दी. बाइक सवार दिल्ली पुलिस के जवान को वकीलों ने घेर लिया और थप्पड़ जड़ने लगे. जब जवान वहां से भागने लगा तो वकीलों ने उस पर हेलमेट चलाकर मारा. हालांकि हेलमेट उसके बाइक पर लगा. पीड़ित पुलिसवाले ने साकेत थाने में शिकायत दर्ज कराई है. बताया जा रहा है कि इस मामले में दिल्ली पुलिस वकीलों के खिलाफ एफआईआर दर्ज कर सकती है.
सुबह 10 बजे से शुरू हुई हड़ताल
वकीलों की हड़ताल सुबह 10 बजे से ही शुरू हो गई. इसके साइड इफेक्ट आम लोगों को सुबह से ही भुगतने पड़े. वकीलों ने जगह-जगह सड़कों पर ट्रैफिक जाम किया. ऑटो ड्राइवर या आम लोग जिन्होंने भी आगे जाने की कोशिश की उनके साथ वकीलों ने मारपीट और बदसलूकी की, जिसके चलते आम लोग और ज्यादा परेशान हो गए.
पुलिस देखती रही तमाशा
सबसे ज्यादा आश्चर्यजनक था तीस हजारी कोर्ट के बाहर अराजकता पर उतरे वकीलों की इस हरकत पर पुलिस का मूक दर्शक बने रहना. आम लोगों और पत्रकारों के साथ जब वकील बदसलूकी कर रहे थे, तो भारी संख्या में कोर्ट के बाहर मौजूद दिल्ली पुलिस सिर्फ तमाशा देखती रही.
गठित की गई है जांच कमेटी
इस झड़प के बाद वकीलों की मांग पर दिल्ली हाई कोर्ट ने रिटायर्ड जस्टिस एसपी गर्ग की अध्यक्षता में एक जुडिशल जांच कमेटी का गठन कर दिया है, जो 6 हफ्ते में अपनी रिपोर्ट देगी. लेकिन वकील इतना भी इंतजार नहीं करना चाहते, वे तुरंत पुलिसकर्मियों की गिरफ्तारी चाहते हैं.
हाई कोर्ट ने चुनाव पर लगाई रोक
शनिवार को हुई इस हिंसा के बाद तीस हजारी और कड़कड़डूमा कोर्ट में 5 और 7 नवंबर को होने वाले बार एसोसिएशन के चुनावों को भी स्थगित कर दिया गया है. लेकिन दिल्ली की अलग-अलग जिला अदालतों में जिस तरह से आम लोगों, पुलिसकर्मियों और पत्रकारों पर वकीलों ने हमला किया, उससे यह सवाल खड़ा हो रहा है कि आखिर दूसरों को कानून का पाठ पढ़ाने वाले ही खुद कानून को अपने हाथ में क्यों ले रहे हैं.