लखनऊ। उत्तर प्रदेश पावर कॉरपोरेशन के कर्मचारियों की भविष्य निधि के करीब 2,600 करोड़ रुपये का अनियमित तरीके से निवेश किए जाने के मामले में राज्य के बिजली मंत्री श्रीकांत शर्मा और मुख्य विपक्षी दल समाजवादी पार्टी (सपा) के बीच आरोप—प्रत्यारोप का सिलसिला शुरु हो गया है।
शर्मा ने रविवार को पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव के शासनकाल में इस भ्रष्टाचार का दरवाजा खोले जाने का आरोप लगाते हुए कहा कि माफिया सरगना दाऊद इब्राहीम से कथित तौर पर जुड़ी कम्पनी डीएचएफएल में पीएफ निवेश कराने वाली पूर्ववर्ती सरकार के मुखिया रहे अखिलेश उस कम्पनी से अपने रिश्तों के बारे में बतायें। वहीं, सपा ने ‘ट्वीट’ कर कहा कि डीएचएफएल से चंदा लेने वाले बिजली मंत्री बतायें कि ‘ये रिश्ता क्या कहलाता है?’
ऊर्जा मंत्री ने कहा कि अखिलेश के शासनकाल में 21 अप्रैल 2014 को सीपीएफ ट्रस्ट और जनरल प्रॉविडेंट फंड ट्रस्ट के बोर्ड आफ ट्रस्टी ने यह निर्णय लिया था कि राष्ट्रीयकृत बैंकों में जमा की जाने वाली जीपीएफ और सीपीएफ धनराशि पर अगर बैंक निवेश की तरह सुरक्षित और अधिक ब्याज देने वाले विकल्प हो तो उसमें निवेश किया जाए। उसके बाद 17 मार्च 2017 से पॉवर कॉरपोरेशन के संज्ञान में लाये बगैर निजी क्षेत्र की संस्था डीएचएफएल में निवेश शुरू कर दिया गया।
ऊर्जा मंत्री ने कहा कि अखिलेश सरकार ने यह निर्णय लेकर भ्रष्टाचार के दरवाजे खोल दिए। अक्टूबर 2016 में निजी संस्था में निवेश की प्रक्रिया को आगे बढ़ाया गया और 17 दिसंबर 2016 को संबंधित ट्रस्ट के सचिव और निदेशक (वित्त) को इसके लिए अधिकृत कर दिया गया। उसके बाद 17 मार्च 2017 से कर्मचारियों की भविष्य निधि का गलत तरीके से डीएचएफएल में निवेश किया जाने लगा।
उन्होंने कहा कि सपा के ही प्रवक्ता ने डीएचएफएल को माफिया सरगना दाऊद इब्राहीम से जुड़ी कम्पनी बताया है। अखिलेश यह बताएं कि उनका इस कम्पनी से क्या सम्बन्ध है? क्या इस कम्पनी में भविष्य निधि का निवेश अखिलेश के ही इशारे पर हो रहा था? शर्मा ने इस मामले पर योगी सरकार को घेरने वाली कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी वाड्रा को भी निशाने पर लेते हुए कहा कि जिनके घर शीशे के होते हैं वह दूसरों के घर पर पत्थर नहीं फेंकते। प्रियंका को भी यह बताना होगा कि बीकानेर और हरियाणा में उनके पति रॉबर्ट वाड्रा ने किसानों की जमीन क्यों हड़पी। उन्होंने कहा कि 10 जुलाई 2019 भविष्य निधि निवेश में अनियमितता की शिकायत मिलने पर पावर कॉरपोरेशन ने 12 जुलाई को जांच समिति गठित की जिसने अपनी रिपोर्ट 29 अगस्त को दी। मामले की सीबीआई जांच के सिलसिले में आज पत्र भी भेज दिया गया है।
इस बीच, सपा ने बिजली मंत्री पर पलटवार करते हुए कहा ”डीएचएफएल से 20 करोड़ रुपये का चंदा लेने वाले भाजपा के मंत्री शर्मा जी आप बताएं कि ये रिश्ता क्या कहलाता है?” पार्टी ने ट्वीट कर कहा ”भ्रष्टाचार में आकंठ डूबी सत्ता नये—नये पत्रों से जनता का ध्यान भटका रही है। द्वेष की राजनीति के चलते झूठे आरोप लगा रही है।”इस बीच, कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष अजय कुमार लल्लू ने इस घोटाले के खिलाफ आंदोलन चलाने का एलान किया है। उन्होंने यहां प्रेस कांफ्रेंस में कहा कि जब तक कर्मचारियों की भविष्य निधि का एक—एक पैसा वापस नहीं होता है, तब तक पार्टी संघर्ष करेगी।
इधर, बिजलीकर्मियों के संगठन ‘विद्युत् कर्मचारी संयुक्त संघर्ष समिति’ ने घोटाले की सीबीआई से जांच कराने के निर्णय की प्रशंसा करते हुए प्रथम दृष्टया दोषी पॉवर कार्पोरेशन प्रबंधन के चेयरमैन और प्रबन्ध निदेशक को तत्काल हटाने की मांग की है। साथ ही संगठन ने मामले में कई सवाल भी उठाये हैं।
संघर्ष समिति के वरिष्ठ पदाधिकारी शैलेन्द्र दुबे ने सवाल किया कि जब विगत 10 जुलाई को हुई एक अनाम शिकायत पर पावर कार्पोरेशन प्रबंधन ने जांच करायी और 29 अगस्त को रिपोर्ट भी मिल गयी तब प्रबंधन किसे बचाने के लिए दो महीने तक चुप्पी साधे बैठा रहा? इसके अलावा योगी सरकार में भी डीएचएफएल में निवेश कैसे और किसकी अनुमति से होता रहा? कुल निवेश 4122.70 करोड़ रुपये का है जिसमें से 2268 करोड़ रुपये डूब गये हैं। मालूम हो कि उत्तर प्रदेश पावर कॉरपोरेशन लिमिटेड के कर्मचारियों की भविष्य निधि को संबंधित ट्रस्ट के अधिकृत प्रतिनिधियों द्वारा गलत तरीके से निजी संस्था डीएचएफएल में निवेश किए जाने के मामले में शनिवार को सीपीएफ ट्रस्ट और जीपीएफ ट्रस्ट के तत्कालीन सचिव पीके गुप्ता और तत्कालीन निदेशक (वित्त) एवं सह ट्रस्टी सुधांशु द्विवेदी के खिलाफ मुकदमा दर्ज कर दोनों को गिरफ्तार कर लिया गया है। सरकार ने मामले की सीबीआई से जांच कराने की सिफारिश की है। सीबीआई द्वारा मामला हाथ में न लिए जाने तक प्रकरण की जांच आर्थिक अपराध अनुसंधान शाखा से कराई जाएगी।