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चंद्रयान-2 के बाद इन बड़े अभियानों की तैयारी में जुटा ISRO, सबसे पहले है गगनयान

बेंगलुरू। चंद्रयान-2 मिशन के लिए भारत ऐतिहासिक पलों का गवाह नहीं बन पाया। लैंडर विक्रम की सॉफ्ट लैंडिंग के कुछ वक्त पहले उसका संपर्क पृथ्वी से टूट गया। हालांकि इससे वैज्ञानिक निराश नहीं हुए। चंद्रयान-2 ऑर्बिट में सफलतापूर्वक स्थापित हो चुका है। वे अगले साढ़े सात साल तक काम करता रहेगा। वैज्ञानिकों का कहना है कि चंद्रयान-2 तस्वीरें और अन्य डाटा भेजता रहेगा। हाल ही में इसरो प्रमुख के सिवन ने दावा किया कि चंद्रयान2 95 नही बल्कि 98 फीसदी सही स्थति में है।

चंद्रयान-2 मिशन में भले ही ISRO को बड़ा झटका लगा हो, लेकिन संगठन के भविष्य के अन्य प्रोजेक्टों पर इसका कोई असर नहीं पड़ेगा। ये सारे मिशन अपने तय समय के अनुसार ही होंगे। ISRO के वैज्ञानिक अपने भविष्य के प्रोजेक्टों की तैयारी में लग गए हैं। अगले 5 से 7 साल में ISRO ऐसे कई प्रोजेक्टों पर काम कर रहा है, जो देश को विज्ञान के क्षेत्र में आग्रणी देशों की सूची में ला खड़ा करेंगे। आइए जानें कौन से हैं ये मिशन…

अंतरिक्ष की साइंटिफिक यात्रा कराने के लिए ‘गगनयान’

ये इसरो का बेहद महत्वकांक्षी प्रोजेक्ट है। इसके जरिए इसरो 3 यात्रियों को अंतरिक्ष में सात दिनों के लिए भेजेगा। शनिवार को इसरो प्रमुख के सिवन ने इसके बारे में जानकारी भी दी है। ये मिशन 2022 तक पूरा होगा। इससे पहले मिशन की सुरक्षा और सटीकता की जांच करने के लिए दिसंबर 2020 और जुलाई 2021 में बिना इंसान के गगनयान का प्रक्षेपण किया जाएगा। इसरो ने इस मिशन के तहत भारतीय वायुसेना से समझौता किया है ताकि 3 अंतरिक्ष यात्रियों की खोज की जा सके। बता दें, अब तक रूस, अमरीका और चीन ही ये सफलता हासिल कर पाए हैं। इस मिशन के लिए रूस की स्पेस एजेंसी भारतीय वायुसेना के पायलटों को एस्ट्रोनॉट की ट्रेनिंग मुहैया कराएगी।

आदित्य-L1

सारी दुनिया के वैज्ञानिक सूर्य के बारे में जानने के लिए उत्सुक हैं। इसी खोज को आगे बढ़ाते हुए ISRO पहली बार 2020 के अंत तक सूर्य के विभिन्न आयामों की जांच करने के लिए सोलर प्रोब मिशन आदित्य-L1 छोड़ेगा। 400 किलोग्राम वजनी आदित्य धरती से 15 लाख किमी ऊपर स्थित हैलो ऑर्बिट में लग्रांज-1 बिंदु के पास स्थापित किया जाएगा। आदित्य में सिर्फ एक पेलोड होगा। इसके माध्यम से सूर्य के कोरोना, सौर लपटों, तापमान, चुबंकीय क्षेत्र समेत अन्य आयामों और उनसे पृथ्वी पर होने वाले प्रभावों को आंका जाएगा। जानकारी के अनुसार- इस अभियान को 2012-13 में लॉन्च करने की योजना थी, पर तकनीकी कारणों से इस पर काम नहीं हो पाया।

कार्टोसैट-3: टल सकती है लॉन्चिंग

इसरो प्रमुख डॉ. के. सिवन ने हाल ही में कहा था कि चंद्रयान-2 मिशन के बाद इसरो और उसके वैज्ञानिक आराम अपने अगले मिशन जारी रखेंगे। आपको बता दें, चंद्रयान2 के बाद इसी साल अक्टूबर में कार्टोसैट-3 की लॉचिंग होनी थी। लेकिन इसकी लॉचिंग अभी टल गई है। इसके बारे में बता दें, यह मिशन दुश्मनों के होश उड़ाने वाला होगा। दुश्मनों पर नजर रखने के लिए यह मिशन देश के लिए ताकतवर आंख की तरह होगा। इससे पड़ोसी मुल्क के आतंकी कैंपों पर नजर रखी जाएगी।

NISAR प्रोजेक्ट

Nasa-Isro Synthetic Aperture Radar (Nisar) नाम का ये प्रोजेक्ट अगर सफल हो जाता है, तो पूरी दुनिया भारत का लोहा मानेगी। इस प्रोजेक्ट पर अमरीकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा और भारतीय अंतरिक्ष एजेंसी साझे तौर पर करेंगी। 10 हजार करोड़ रुपए की संभावित लागत से तैयार होने वाला ये प्रोजेक्ट 2021 तक लॉन्च किया जा सकता है। यह दुनिया का सबसे महंगा अर्थ ऑब्जरवेशन सैटेलाइट होगा। इसे जीएसएलवी-एमके 2 रॉकेट से छोड़ा जाएगा।

अवतार

यह इसरो की महत्वकांक्षी योजना है। इसका पूरा नाम Aerobic Vehicle for Transatmospheric Hypersonic Aerospace Transportation है। आपको बता दें कि इसरो की ओर से इसके एक हिस्से रीयूजेबल लॉन्च व्हीकल (RLV) यानी कलामयान का सफल परीक्षण किया जा चुका है। इस परियोजना में DRDO भी सहयोग कर रही है। इससे इंसानों को अंतरिक्ष की यात्रा कराई जाएगी। खास बात यह है कि उपग्रहों की लॉन्चिंग के लिए एक ही यान का उपयोग कई बार किया जा सकेगा। यह यान अंतरिक्ष में उपग्रहों को उनकी निर्धारित कक्षा में स्थापित करनके के बाद वापस लौट आएगा। इससे बार-बार रॉकेट बनाने का खर्च बचेगा। इसके 2025 तक पूरा होने की उम्मीद है।

शुक्र मिशन के लिए ‘शुक्रयान’

शुक्रयान मिशन को इसरो 2023 तक पूरा करेगा। Indian Venusian orbiter MISION यानी शुक्रयान मिशन के जरिए ISRO शुक्र के वातावरण का अध्ययन करेगा। शुक्रयान में 100 किलोग्राम का पेलोड हो सकता है। यह शुक्र ग्रह के चारों तरफ अंडाकार चक्कर लगाएगा। इसमें करीब 12 यंत्र लगाए जाएंगे, जो शुक्र के बारे में डाटा भेजेंगे। बता दें, अब तक केवल चार देश ही शुक्र पर अपने मिशन भ्ज्ञेज पाए हैं, जिनमें अमरीका, रूस, जापान और यूरोपियन यूनियन शामिल हैं। सबसे पहले 1962 में अमरीकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा ने इस मिशन में सफलता हासिल की थी।

मंगलयान-2

ये मिशन 2021-22 में लॉच्न किया जा सकता है। बता दें, इससे पहले 2014 में इसरो के मंगलयान मिशन ने पहली बार सफलता हासिल कर चुका है। इसलिए अब मंगलयान-2 (मार्स ऑर्बिटर मिशन-2, मॉम-2) भेजा जाएगा। इस पर भी चंद्रयान की तरह लैंडर और रोवर मंगल की सतह पर उतारा जाएगा। इसके जरिए सतह, वातावरण, रेडिएशन, तूफान, तापमान आदि का विश्लेषण किया जाएगा।

दो स्पेसक्राफट को अंतरिक्ष में जोड़ेगा ‘स्पेडेक्स’

इसरो ने खुद का स्पेस स्टेशन बनाने का ऐलान किया है और इसके लिए 10 करोड़ रुपए सरकार की ओर से दिए गए हैं। इस काम से पहले स्पेस में स्पेस क्राफ्ट को अंतरिक्ष में जोड़ने की क्षमता हासिल करनी होगी। इसे स्पेस डॉकिंग एक्सपेरीमेंट (स्पेडेक्स) कहा जाता है। ये बेहद जटिल प्रक्रिया होती है। इसके लिए दो स्पेसक्राफ्ट 2025 तक पीएसएलवी रॉकेट से छोड़े जाएंगे।

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