नई दिल्ली। सोनिया गांधी के नाम सबसे अधिक समय तक कांग्रेस अध्यक्ष का रिकार्ड रहा है और वह एक बार फिर बेहद कठिन दौर में पार्टी की कमान संभालने जा रही हैं। 20 महीने पहले उन्होंने अपनी इच्छा से कांग्रेस अध्यक्ष का पद त्यागा था, लेकिन शनिवार को उन्हें फिर से अंतरिम अध्यक्ष चुन लिया गया। इन बीस माह के दौरान राहुल गांधी पार्टी के अध्यक्ष रहे और गत लोकसभा चुनाव में पार्टी की करारी हार के बाद उन्होंने पद त्याग दिया।
शनिवार को कांग्रेस कार्यसमिति की बैठक में सोनिया गांधी अध्यक्ष पद के लिए स्वाभाविक विकल्प थीं, क्योंकि अनेक बार वह पार्टी के लिए संकटमोचक की भूमिका में रही हैं और पार्टी को एकजुट रखने में भी सफल रही हैं। आलोचकों का कहना है कि कार्यसमिति की बैठक के घटनाक्रम ने एक बार फिर रेखांकित किया है कि कांग्रेस गांधी परिवार से बाहर देख पाने की स्थिति में नहीं है। चूंकि पार्टी में आंतरिक चुनावों के लिए कोई टाइमलाइन तय नहीं की गई है, इसलिए जाहिर है सोनिया गांधी ही आगे भी पार्टी का नेतृत्व करती रहेंगी।
दे चुकी हैं सफल नेतृत्व
1998 से 2017 तक पार्टी की कमान संभालने वालीं सोनिया गांधी के खाते में संप्रग के रूप में एक सफल गठबंधन कायम करने का श्रेय दर्ज है। उन्होंने ही भाजपा के नेतृत्व वाले राजग को 2004 में हराने के लिए विपक्षी दलों को एकजुट किया था।
मनमोहन सिंह के नेतृत्व में दो कार्यकाल वाली संप्रग सरकार के समय सोनिया पर यह आरोप भी लगता रहा कि वह सत्ता का समानांतर केंद्र चला रही हैं। उन्हें संप्रग-एक के समय लाभ के पद के मामले में अपनी लोकसभा सदस्यता से इस्तीफा देना पड़ा था, हालांकि फिर से हुए चुनाव में वह रायबरेली से ज्यादा बड़े अंतर से जीतने में सफल रही थीं। वैसे 2019 के आम चुनाव में रायबरेली सीट में उनकी जीत का अंतर एक लाख से कम हो गया है।
तीन राज्यों में होगा इम्तिहान
अध्यक्ष पद पर सोनिया गांधी की वापसी एक ऐसे समय में हुई है जब कांग्रेस को एक के बाद एक बड़े नेता पार्टी छोड़ रहे हैं और नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में भाजपा की ताकत बढ़ती जा रही है। कांग्रेस को इसी साल हरियाणा, झारखंड और महाराष्ट्र में चुनावी चुनौती का सामना करना है। उनके बेटे (राहुल) के नेतृत्व में पार्टी केवल चार राज्यों की सत्ता तक सिमट चुकी है।
जिन राज्यों में इस साल चुनाव होने हैं उनमें कांग्रेस सत्ता में रह चुकी है, लेकिन इस समय उसकी हालत बेहद खराब है। इन राज्यों में नेताओं की कलह खुलकर सामने आ चुकी है। इन सबको पटरी पर लाना सोनिया की सबसे बड़ी तात्कालिक चुनौती है।