गाजियाबाद : सड़कों व खेतों में घूमते निराश्रित पशुओं को आसरा देने के लिए सरकार ने गोशालाएं तो खोल दीं मगर उनकी खुराक के लिए सरकारी प्रयास नाकाफी साबित हो रहे हैं। गायों के प्रतिदिन खाने के लिए दिया जाने वाला धन उनके एक बार की खुराक के बराबर भी नहीं है। नतीजा यह है कि गोशालाओं में बंद गाये दान के भरोसे ही चल रही है।
प्रदेश सरकार ने सड़कों, गलियों, खेतों में घूम रहे निराश्रित पशुओं को आसरा देने के लिए अस्थायी गोशालाएं खुलवाकर उन्हें आसरा देने का अभियान जनवरी 2019 में शुरू किया। जिसका नतीजा यह हुआ कि जिला प्रशासन ने आनन फानन में अस्थायी गोशालाएं खुलवाकर निराश्रित घूम रहे गोवंश को स्थायी आसरा देना शुरू किया। पिछले आठ माह में करीब 45 अस्थायी गोशालाएं बनाई गईं। इन गोशालाओं में करीब पांच हजार पशुओं को संरक्षित किया गया। मगर संरक्षित पशुओं के खाने की समस्या आ रही है। सरकार की ओर से प्रति पशु 30 रुपये का बजट ही निर्धारित किया गया है। ऐसे में 30 रुपये में इन पशुओं को मानक के अनुरूप खाना नहीं मिल पा रहा है। एक दिन की खुराक 84 रुपये
नंदग्राम गोशाला में काम करने वाले संग्राम सिंह ने बताया कि एक स्वस्थ गाय दिन भर में करीब सात किलो भूसा व करीब दो किलो चोकर खाती है। इस वक्त बाजार में 7 रुपये किलो भूसा व 700 रुपये में 40 किलो चोकर मिल रहा है। अगर इसका हिसाब लगाया जाए तो एक गाय दिन में 49 रुपये का भूसा तथा 35 रुपये का चोकर दो टाइम मिलाकर खाती है। यानी कि पूरा दिन का खर्चा 84 रुपये आता है। इसमें हरे चारा को नहीं जोड़ा गया है। जिला मुख्य पशुचिकित्साधिकारी डॉ. विजेंद्र त्यागी ने बताया कि गोशालाओं में 30 रुपये प्रतिगाय खुराक लिए मिल रहे हैं। जिला पंचायतों तथा स्थानीय लोगों से सहयोग मांगकर खाने की व्यवस्था की जा रही है। शासन स्तर पर खुराक का बजट बढ़ाने की योजना पर काम चल रहा है।