दिल्ली। बंदरों को पकड़ने के लिए दिल्ली उच्च न्यायालय के 2007 के फैसले पर दक्षिण दिल्ली नगर निगम पुनर्विचार याचिका दायर करने पर विचार कर रहा है। निगम ने इस फैसले में संशोधन के लिए अदालत में अर्जी लगाई थी। इस पर 3 जुलाई को हुई सुनवाई में अदालत ने इसे खारिज करते हुए कहा कि इस फैसले का पालन करने में किसी तरह की असमर्थता पर विचार नहीं किया जा सकता है। निगम के मुताबिक, बंदरों को पकड़ने का काम वन विभाग का है, लेकिन उनकी तरफ से इस दिशा में अब तक कोई पहल नहीं की गई।
दिल्ली में बंदरों के बढ़ते आतंक को देखते हुए अदालत में यह मामला पहुंचा था, जिस पर 2007 में अदालत ने फैसला सुनाया। इस फैसले में संबंधित एजेंसी को बंदरों को पकड़कर असोला में छोड़ने के लिए कहा था। वन विभाग को भी बंदरों के लिए खाने का इंतजाम करने को कहा गया था, ताकि खाने की तलाश में बंदर इधर उधर न घूमें। अब तक करीब 23 हजार बंदरों को वाइल्ड लाइफ सेंचुरी में विस्थापित किया जा चुका है।
निगम के मुताबिक बंदरों को पकड़कर असोला भाटी माइंस तक छोड़ने की जिम्मेदारी किसकी होगी, अभी भी स्पष्ट नहीं है। वाइल्ड लाइफ प्रोटेक्शन एक्ट, 1972 के मुताबिक बंदरों को पकड़ने और विस्थापित करने की जिम्मेदारी वन विभाग की है। लेकिन वन विभाग की तरफ इस जिम्मेदारी को निभाने के लिए पहल नहीं की जा रही है। ऐसे में दक्षिणी निगम इस मामले को लेकर अदालत का दोबारा रुख करने की तैयारी में है।