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गंभीर जल संकट से जूझ रहा देश, 2030 तक कई शहरों में खत्म हो जाएगा पानी

नई दिल्ली। देश के कई शहरों में जल संकट ने विकराल रूप धारण कर लिया है। भविष्य में इसके और गहराने के आसार दिख रहे हैं। नीति आयोग की एक रिपोर्ट के मुताबिक 2030 तक पानी खत्म होने की कगार पर आ जाएगा। इस किल्लत का सामना सबसे ज्यादा दिल्ली, बंगलूरू, चेन्नई और हैदराबाद के लोगों को करना पड़ेगा। रिपोर्ट के अनुसार 2020 से ही पानी की परेशानी शुरू हो जाएगी। यानी कुछ समय बाद ही करीब 10 करोड़ लोग पानी के कारण परेशानी उठाएंगे।

2030 तक देश के लगभग 40 फीसदी लोगों तक पीने के पानी की पहुंच खत्म हो जाएगी। वहीं चेन्नई में आगामी दिनों में तीन नदियां, चार जल निकाय, पांच झील और छह जंगल पूरी तरह से सूख जाएंगे। जबकि कई अन्य जगहों पर भी इन्हीं परिस्थितियों से गुजरना पड़ेगा। ऐसा नहीं है कि यह रिपोर्ट पहली बार आई है। तीन साल पहले भी नीति आयोग ने अपनी एक रिपोर्ट में बताया था कि देश में जल संरक्षण को लेकर अधिकांश राज्यों का काम संतुष्टिजनक नहीं है।

जिन राज्यों की रिपोर्ट अत्यंत कमजोर है उनमें इन राज्यों के नाम हैंः

1. छत्तीसगढ़
2. राजस्थान
3. गोवा
4. केरल
5. उड़ीसा
6. बिहार
7. उत्तरप्रदेश
8. हरियाणा
9. झारखंड
10. सिक्किम
11. असम
12. नागालैंड
13. उत्तराखंड
14. मेघालय

मध्यम स्तर की रिपोर्ट वाले राज्यों में त्रिपुरा और हिमाचल प्रदेश का नाम सामने आया था। मौसम विभाग के अनुसार तब बताया गया था कि कई वर्षों से देश के कुछ राज्यों में औसत से भी कम बारिश दर्ज की गई थी। जबकि कई राज्य सूखे की स्थिति से गुजर रहे हैं। यही वजह है कि भू-जल स्तर लगातार नीचे गिरता जा रहा है। पानी के संकट से निपटने के लिए नीति आयोग ने देश की आधी, करीब 450 नदियों को आपस में जोड़ने का एक विस्तृत प्रस्ताव तैयार किया है। बरसात में या उसके बाद बहुत सी नदियों का पानी समुद्र में जा गिरता है। अगर समय रहते इस पानी को उन नदियों में ले जाया जाए, जहां साल के अधिकतर महीनों में सूखा दिखता है तो आसपास के क्षेत्रों में कृषि हो सकती है।

अक्टूबर 2002 में भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने सूखे व बाढ़ की समस्या से निपटने के लिए भारत की महत्वपूर्ण नदियों को जोड़ने संबंधी परियोजना का खाका तैयार किया था। हिमालयी हिस्से के तहत गंगा, ब्रह्मपुत्र और इनकी सहायक नदियों के पानी को इकट्ठा करने की योजना बनाई गई। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने पहले कार्यकाल में गंगा समेत देश की 60 नदियों को जोड़ने की योजना को मंजूरी दी थी।

इसका फायदा यह होगा कि किसानों की मानसून पर निर्भरता कम हो जाएगी। पानी के अभाव में खराब हो रही लाखों हेक्टेयर जमीन पर सिंचाई हो सकेगी। नदियों को जोड़ने से हजारों मेगावॉट बिजली भी पैदा होगी। ज्यादा पानी वाली नदियों मसलन गंगा, गोदावरी और महानदी को दूसरी नदियों से जोड़ा जाएगा। इसके लिए इन नदियों पर डैम बनाए जाएंगे। बाढ़-सूखे पर काबू पाने के लिए यही एकमात्र रास्ता बताया गया है।

साफ पानी न मिलने से हर साल दो लाख लोगों की मौत

नीति आयोग ने पिछले साल पानी पर जारी रिपोर्ट में कहा था कि देश में करीब 60 करोड़ लोग पानी की गंभीर किल्लत का सामना कर रहे हैं। 2030 तक देश में पानी की मांग उपलब्ध जल वितरण की दोगुनी हो जाएगी और देश की जीडीपी में छह प्रतिशत की कमी देखी जाएगी। देश में करीब 60 करोड़ लोग पानी की गंभीर किल्लत का सामना कर रहे हैं। करीब दो लाख लोग स्वच्छ पानी न मिलने के चलते हर साल जान गंवा देते हैं।

रिपोर्ट में कहा गया है, ‘2030 तक देश में पानी की मांग उपलब्ध जल वितरण की दोगुनी हो जाएगी। जिसका मतलब है कि करोड़ों लोगों के लिए पानी का गंभीर संकट पैदा हो जाएगा और देश की जीडीपी में छह प्रतिशत की कमी देखी जाएगी।’ कुछ स्वतंत्र संस्थाओं द्वारा जुटाए डाटा का उदाहरण देते हुए रिपोर्ट में दर्शाया गया था कि करीब 70 प्रतिशत प्रदूषित पानी के साथ भारत जल गुणवत्ता सूचकांक में 122 देशों में 120वें पायदान पर है।

रिपोर्ट में जल संसाधनों और उनके उपयोग की समझ को गहरा बनाने की आसन्न आवश्यकता पर जोर दिया गया है। 2016-17 अवधि की इस रिपोर्ट में गुजरात को जल संसाधनों के प्रभावी प्रबंधन के मामले में पहला स्थान दिया गया है। सूचकांक में गुजरात के बाद मध्य प्रदेश, आंध्र प्रदेश, कर्नाटक और महाराष्ट्र का नंबर था। उत्तर-पूर्वी और हिमालयी राज्यों में त्रिपुरा शीर्ष पर रहा था जिसके बाद हिमाचल प्रदेश, सिक्किम और असम का नंबर था।

आंकड़े कहते हैं कि भारत में 1.2 करोड़ कुएं हैं जबकि कुछ ज्यादा भरोसेमंद आंकड़े इस संख्या को तीन करोड़ आंकते हैं। इसी तरह यह रिपोर्ट भारत में तो अपनी तरह की पहली रिपोर्ट हो सकती है, और उसका यह दावा है –  “कंपोजिट वाटर मैनेजमेंट इंडेक्स विकसित करने का नीति आयोग का यह अनूठा और शायद दुनिया में अपनी तरह का पहला काम है।”

भीषण जलसंकट से गुजर रहा चेन्नई

इन दिनों दक्षिण भारतीय राज्य तमिलनाडु की राजधानी चेन्नई में पानी भरने के लिए लगी लंबी-लंबी कतारें और कतारों में लगे लोगों के बीच होती लड़ाई किसी भी जगह देखी जा सकती है। कई लोग पानी की किल्लत के चलते नहा नहीं पा रहे हैं। होटल में लोगों को पानी के इस्तेमाल को लेकर चेतावनी दी जा रही है।

यह हाल है भारत के छठे सबसे बड़े शहर चेन्नई का है जहां इसी सप्ताह चार जलाशय सूख गए हैं। और अब जबकि बहुत कम मात्रा में पानी बचा हुआ है तो ये बता पाना मुश्किल है ये पानी आखिर कब तक चलेगा। पानी की इस किल्लत का परिणाम ये है कि चेन्नई की लगभग चालीस लाख से ज्यादा आबादी के लिए एकमात्र आसरा अब सिर्फ सरकारी पानी टैंकर ही हैं।

कुछ जगहों पर तो लोग कुंए से भी पानी निकालने की कोशिश कर रहे हैं लेकिन पानी जमीन के बहुत नीचे जा चुका है। यह भयावह स्थिति देश के अधिकांश शहरों मे हैं। लोगों को इस बात का डर भी है कि कब उनके घर में लगे नल से पानी आना बंद हो जाए।

शहर के छोटे रेस्टोरेंट्स को बंद किया जा रहा है जबकि कुछ दफ्तरों में वर्क फ्रॉम होम (घर से काम) का नियम लागू किया गया है ताकि कार्यालयों में पानी बचाया जा सके। शहर के मेट्रो सिस्टम ने अपने स्टेशनों पर एयर कंडीशनिंग का उपयोग करना भी बंद कर दिया है ताकि पानी बचाया जा सके।

महाराष्ट्र में भी जलाशय सूखे

महाराष्ट्र के चार बड़े जलाशयों में भी महज 2 फीसदी पानी बचा है। वहां के छह बड़े जलाशयों का पानी इस्तेमाल के लायक नहीं बचा है। राज्य में मांग हो रही है कि सरकार जलाशयों को जोड़ने की योजना और इस पर कानून बनाए।

लिंकिंग से जिन जलाशयों में ज्यादा पानी है वहां से पानी का संकट झेल रहे जलाशयों में पानी ट्रांसफर किया जा सकता है। कई सांसद ये मानते हैं कि जलवायु परिवर्तन का असर मानसून की दिशा और दशा पर पड़ रहा है। और इसी की वजह से कृषि के दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण राज्यों में मानसून को लेकर अनिश्चितता भी बढ़ रही है। ऐसे में अब सरकर को इस पानी के संकट का दूरगामी हल खोजना होगा।

डे-जीरो की स्थिति

अंतरराष्ट्रीय संस्था वाटर एड की एक रिपोर्ट में कहा गया है कि वर्ष 2030 तक दुनिया के 21 शहरों में डे-जीरो (Day Zero) जैसे हालात बन जाएंगे। 2040 तक भारत समेत 33 देश पानी के लिए तरसने लगेंगे। जबकि वर्ष 2050 तक दुनिया के 200 शहर खुद को डे-जीरो वाले हालात में पाएंगे।

अभी दिल्ली को रोजाना लगभग 450 से 470 करोड़ लीटर पानी चाहिये, लेकिन केवल 75 प्रतिशत पानी की आपूर्ति ही हो पा रही है। आपूर्ति होने वाला 340 से 350 करोड़ लीटर पानी का आधा हिस्सा हरियाणा से आता है। जबकि बाकी पानी गंगा नदी और भूमिगत जल से प्राप्त होता है। दिल्ली का 90 फीसदी भूमिगत जल का स्तर गंभीर स्थिति में पहुंच गया है। यहां के अलग-अलग क्षेत्रों में जलस्तर दो मीटर तक प्रति वर्ष के हिसाब से घट रहा है। दिल्ली का 15 प्रतिशत क्षेत्र अब नाजुक माना जा रहा है।

संयुक्त राष्ट्र की एक रिपोर्ट के मुताबिक वर्ष 2028 तक दिल्ली टोक्यो को पीछे छोड़कर सबसे ज्यादा आबादी वाला शहर बन जाएगा। तब तक इस शहर की जनसंख्या तीन करोड़ 72 लाख के पार पहुंच सकती है। यानी तब दिल्ली में पानी की कमी 40 प्रतिशत ज्यादा बढ़ जाएगी।

यूनाइटेड स्टेट्स जियोलॉजिकल सर्वे के मुताबिक दुनिया में 32 करोड़ ट्रिलियन गैलन पानी है। एक गैलन में 3.7 लीटर पानी होता है। चौंकाने वाली बात ये है कि दुनिया में मौजूद कुल पानी का केवल दो प्रतिशत ही पीने लायक है और इसमें से आधे यानी एक फीसदी पानी तक हमारी पहुंच आसान है। इसमें भी भारत के पास सिर्फ चार प्रतिशत ही पानी है। जबकि भारत में दुनिया के 18 फीसदी लोग रहते हैं।

जमीन के लिहाज से भारत के पास पृथ्वी का केवल 2.5 फीसदी हिस्सा है। दुनिया में पीने के पानी का बड़ा हिस्सा भूमिगत जल से मिलता है। भारत में जरूरत से 70 प्रतिशत ज्यादा भूमिगत निकाला जा रहा है। केंद्रीय भूजल बोर्ड मुताबिक भारत में भूमिगत जल का स्तर तेजी से गिर रहा है। दुनिया भर के कुल भूमिगत जल का 24 प्रतिशत हिस्सा हमारे देश में इस्तेमाल हो रहा है।

छोटी लेकिन महत्वपूर्ण बातें, जिनका ध्यान रखकर बचाया जा सकता है पानी

  • फव्वारे से या नल से नहाने पर लगभग 180 लीटर पानी का प्रयोग होता है जबकि बाल्टी से स्नान करने पर सिर्फ 18 लीटर पानी प्रयोग में आता है। तो हम बाल्टी से स्नान करके प्रतिदिन 162 लीटर पानी की बचत प्रति व्यक्ति के हिसाब से कर सकते हैं।
  • शौचालय में फ्लश टैंक का उपयोग करने में एक बार में 13 लीटर पानी का प्रयोग होता है जबकि यही काम छोटी बाल्टी से किया जाए तो सिर्फ चार लीटर पानी से यह काम हो जाता है ऐसा करके हम हर बार नौ लीटर पानी की बचत कर सकते हैं।
  • काफी लोगों की आदत होती है कि दाढ़ी बनाते वक्त नल को खुला रखते हैं तो ऐसा करके ऐसे लोग 11 लीटर पानी बर्बाद करते हैं जबकि वे यह काम एक मग लेकर करें तो सिर्फ एक लीटर में हो सकता है और प्रतिव्यक्ति 10 लीटर पानी की बचत हो सकती है।
  • दंत मंजन करते वक्त नल खोलकर रखने की आदत से 33 लीटर पानी व्यर्थ बहता है जबकि एक मग में पानी लेकर दंत मंजन किया जाए तो सिर्फ एक लीटर पानी ही खर्च होता है और प्रति व्यक्ति 32 लीटर पानी की बचत प्रतिदिन की जा सकती है।
  • महिलाएं जब घरों में कपड़े धोती हैं तो नल खुला रखना आम बात है ऐसा करते वक्त 166 लीटर पानी बर्बाद होता है जबकि एक बाल्टी में पानी लेकर कपड़े धोने पर 18 लीटर पानी में ही यह काम हो जाता है तो सिर्फ थोड़ी सी सावधानी जिम्मेदारी के साथ रखकर प्रति दिन 148 लीटर पानी प्रतिघर के हिसाब से बचाया जा सकता है।
  • घास के मैदान में बेहिसाब पानी देने में 10 से 12 किलो लीटर पानी काम आता है और इतने पानी से एक छोटे परिवार हेतु एक माह का जल उपलब्ध हो सकता है। तो अब राष्ट्र के प्रति और मानव सभ्यता के प्रति जिम्मेदारी के साथ सोचना आम आदमी को है कि वो कैसे जल बचत में अपनी महत्वपूर्ण जिम्मेदारी निभा सकता है।
  • याद रखें पानी पैदा नहीं किया जा सकता है यह प्राकृतिक संसाधन है जिसकी उत्पत्ति मानव के हाथ में नहीं है। पानी की बूंद-बूंद बचाना समय की मांग है और हमारी वर्तमान सभ्यता की जरूरत भी। हम और आप क्या कर सकते हैं ये आपके और हमारे हाथ में है। समय है कि निकला जा रहा है।

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