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मानसून की धीमी चाल से सब परेशान, जानिए- क्या होगा इसका असर

मुंबई। भारत में मानसून की चाल औसत से भी धीमी है। इसकी वजह से मानसून केरल में करीब एक हफ्ते देर से पहुंचा है। जून के महीने में अब तक बारिश भी औसत से 44 फीसद कम हुई है। इसके चलते बारिश पर आधारित खेती चौपट होने के साथ ही देश के कई हिस्से में भीषण सूखे की आशंका ने चिंता बढ़ा दी है। बारिश में कमी से उपभोक्ताओं की मांग, अर्थव्यवस्था की चाल और बाजार के हाल पर बहुत गंभीर और व्यापक प्रभाव पड़ेगा।

भारतीय मौसम विज्ञान विभाग (आइएमडी) ने इस साल औसत बारिश की भविष्यवाणी की है। वहीं मौसम का हाल बताने वाली देश की इकलौती प्राइवेट एजेंसी स्काईमेट ने औसत से कम बारिश का अनुमान जताया है। आइएमडी के मुताबिक सामान्य या औसत मानसून से मतलब जून से सितंबर के चार महीने के दौरान पिछले 50 साल के औसत 89 सेंटीमीटर (35 इंच) बारिश का 96 और 104 फीसद के बीच बरसात होना होता है। 90 फीसद से कम बारिश को कम बरसात की श्रेणी में रखा गया है, जो सूखे जैसी स्थिति के समान होता है। 2018 में देश में औसत से नौ फीसद कम बरसात हुई थी। कुछ क्षेत्रों में तो यह कमी 37 फीसद तक दर्ज की गई थी।

इसी तरह अगर 110 फीसद से ज्यादा बारिश होती है तो इसका मतलब है कि मानसून औसत से भी बेहतर है। इसका भी नुकसान है। इससे कहीं बाढ़ का खतरा पैदा होता है कुछ फसलों की उपज भी कम हो सकती है। पहली जून को केरल में बारिश के साथ मानसून की शुरुआत होती है और जुलाई के मध्य तक मानसून पूरे देश में फैल जाता है।

इस साल का क्या है हाल

इस साल केरल में मानसून एक हफ्ते की देरी से आठ जून को पहुंचा। वहीं, अरब सागर में पैदा हुए चक्रवाती तूफान ‘वायु’ ने इसकी नमी को सोख लिया, जिससे इसकी चाल धीमी हो गई है। आमतौर पर 15 जून तक आधे देश में मानसून पहुंच जाता है, लेकिन इस साल देश के एक चौथाई हिस्से तक ही अभी मानसून पहुंचा है।

कम बारिश की आशंका

आमतौर पर देखा गया है, जिस साल मानसून में देरी होती है उस साल कम बरसात भी होती है। इस साल भी अब तक 44 फीसद कम बारिश हुई है। 2016 में भी केरल में आठ जुलाई को मानसून पहुंचा था, लेकिन पूरे देश में मानसून के पहुंचने में देरी हुई थी और वह 13 जुलाई तक पहुंचा था। इससे औसत बारिश हुई।

फसलों को हो सकता है नुकसान

भारत में मानसून अपने साथ 70 फीसद बरसात लेकर आता है। मानसूनी बरसात से ही धान, गेहूं, गन्ना और सोयाबीन जैसे तिलहन की खेती का भविष्य तय होता है। भारत की 2.5 खरब की अर्थव्यवस्था में खेती का हिस्सा भले ही 15 फीसद है, लेकिन देश की 130 करोड़ में से 50 फीसद आबादी खेती पर ही निर्भर है। अच्छे मानसून से पैदावार बढ़ती है और ग्रामीण क्षेत्रों में उपभोक्ता सामान की मांग में वृद्धि होती है।

पीएम के वादे पर पड़ेगा प्रभाव

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अगले पांच साल में किसानों की आय दोगुनी करने और अर्थव्यवस्था में तेजी लाने का वादा किया है। कम बारिश से इस पर असर पड़ सकता है। उपभोक्ता सामान का उत्पादन करने वाली कंपनियों का कहना है कि ग्रामीण क्षेत्रों में मांग कम हुई है। अगर बारिश अच्छी होगी तो पैदावार भी बढ़ेगी और पैदावार बढ़ेगी तो कीमतें काबू में रहेंगी।

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