स्वास्थ्य

जामुन- मात्र फल ही नहीं ,स्वास्थ्य को पहुँचाता है बहुत लाभ

बारिश का मौसम शुरू होते ही पेड़ों पर जामुन पकने लगता है। जामुन का पेड़ बहुत ऊंचा होता है। इसकी छाल सफेद होती है। बैशाख मास में इसमें मंजरियां आती हैं बाद में फल लगते हैं। इसके वृक्ष पूरे भारत में पाए जाते हैं परन्तु शुष्क स्थानों पर यह वृक्ष नहीं उगता।जम्बू, जामगाछ, जाम्बु और जंबु भाबल ये सभी जामुन के ही नाम हैं।

जामुन कई तरह का होता है। जंगली जामुन का फल खट्टा और छोटा होता है जबकि अन्य प्रकार के जामुन आकार में बड़े और मीठे होते हैं। जामुन के गूदे में लगभग 84 प्रतिशत जल होता है। साथ ही इसमें लगभग 14 प्रतिशत कार्बोहाइड्रेट तथा अल्प मात्रा में प्रोटीन और वसा भी होता है। इसके अतिरिक्त इसमें विटामिन ए, बी, सी, मेलिक एसिड, गौलिक एसिड, आक्जेलिक एसिड तथा टैनिन भी होता है। अच्छे स्वाद के साथ−साथ जामुन में कई चिकित्सकीय गुण भी हैं। इसके गूदे, गुठली, वृक्ष की छाल तथा पत्तों का अनेक रोगों के इलाज में उपयोग किया जाता है।
जामुन के वृक्ष की छाल रूखी, कसैली, मलरोधक, पाक में मधुर तथा खट्टी होती है। यह पित्त के प्रकोप को दूर करती है तथा रक्त विकारों को दूर कर रक्त को साफ करती है। गले के रोगों तथा कफ को दूर करने में भी यह सहायक होती है। अतिसार होने पर भी इसका प्रयोग किया जाता है। फल के रूप में जामुन भारी, मलरोधक कसैला मीठा, ठंड़ा, मंदाग्निकारक, बादी और कफ पित्त नाशक है। यूनानी चिकित्सा पद्धति के अनुसार जामुन दूसरे दर्जे में शीत और रूक्ष, उष्ण यकृत को बल देने वाला और गरमी को शांत करने वाला होता है।
वमन होने पर जामुन के कोमल पत्ते चबाने या उसके पत्तों का रस पीने से लाभ पहुंचता है। जामुन की छाल जलाकर उसकी राख को शहद के साथ चबाने से भी उल्टियों में लाभ पहुंचता है।
जामुन के कोमल तथा ताजे पत्तों को पानी में घोटकर कुल्ला करने से मुंह के छाले ठीक होते हैं। इसकी कच्ची कोपलें चबाने या उनका रस निकाल कर मुंह में डालने से भी छालों में आराम मिलता है।
यों तो जामुन की लकड़ी एक अच्छी दातुन है परन्तु इससे मंजन भी बनाया जा सकता है। इसके लिए जामुन के पत्तों की राख में थोड़ा सा सेंधा नमक पीसकर मिला लें। इस मंजन के प्रयोग से सभी दन्त विकार दूर हो जाएंगे।
गला खराब होने पर जामुन की गुठलियों को पीसकर उसमें शहद मिलाकर गोलियां बना लें। दिन में चार बार दो−दो गोलियां चूसने से कुछ दिनों में गला ठीक हो जाता है। कंठ व्रण होने पर छाल के काढ़े से गरारे करने पर आराम मिलता है।
जामुन के फल को भोजन पचाने वाला तथा भूख बढ़ाने वाला माना जाता है। जामुन को नमक के साथ खाने या जामुन के रस में सेंधा नमक मिलाकर पीने से भोजन का पाचन ठीक हो जाता है। पेट दर्द, दस्त तथा पेचिश में भी इससे लाभ मिलता है। अरूचि में जामुन को नमक−मिर्च के साथ खाना चाहिए।
जामुन की पत्ती के रस में दूध, शहद और शहद की मात्रा से आधा घी मिलाकर पीने से खूनी दस्त में लाभ पहुंचता है। इस मिश्रण को बनाते समय ध्यान रखें कि घी की मात्रा शहद से आधी ही होनी चाहिए। घी और शहद भी बराबर मात्रा में न मिलाएं।
जामुन यकृत को उत्तेजित करने वाला होता है। प्रतिदिन प्रातःकाल जामुन के दस ग्राम रस में सेंधा नमक मिलाकर लेने से बढ़ा हुआ यकृत ठीक हो जाता है। जामुन के वृक्ष की छाल के काढ़े से जख्म धोने से जख्म भरने में मदद मिलती है।
जामुन की गुठली को पीसकर मुंहासों तथा फुंसियों पर लगाने से लाभ होता है परन्तु इस दौरान गर्म तथा खट्टे खाद्य पदार्थों का सेवन नहीं करना चाहिए। श्वेत प्रदर के इलाज में भी जामुन की छाल का प्रयोग लाभकारी होता है। इसके लिए जामुन की 10 ग्राम छाल को 100 ग्राम पानी में उबालें, 25 ग्राम रहने पर दिन में दो बार दो चम्मच का सेवन करें।
मधुमेह के रोगियों के लिए जामुन अमृत के समान है। इसके बीजों में विद्यमान जम्बोलिन शरीर में पहुंचकर भोजन के साथ ग्रहण किए गए स्टार्च को शुगर में नहीं बदलने देता जिससे रक्त में शुगर सामान्य से अधिक नहीं हो पाती। जामुन की गुठली के चूर्ण की दो−दो ग्राम मात्रा दिन में दो बार पानी के साथ कुछ दिनों तक लेने से रक्त में शुगर सामान्य स्तर पर आ जाता है। पेशाब में शक्कर जाने पर जामुन के बीज और गुड़मार की पत्ती का चूर्ण ठंडे जल के साथ लेना चाहिए।
जामुन के कोमल पत्ते, आम के कोमल पत्ते, कैथ कपास के फल को बराबर मात्रा में मिलाकर पीसें और निचोड़कर रस निकालें। इसमें शहद मिलाकर कान में डालने से कान का बहना रुक जाता है।

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button
WP2Social Auto Publish Powered By : XYZScripts.com