नई दिल्ली । दिल्ली में कूड़े के पहाड़ों पर नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल के साथ-साथ सुप्रीम कोर्ट ने तल्ख टिप्पणी की थी। सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि कुतुबमीनार की ऊंचाई करीब 73 मीटर है और लैंडफिल साइट की ऊंचाई 45 मीटर हो चुकी है। अगर आंकड़ों की तुलना करें तो कूड़े के पहाड़ों की ऊंचाई कुतुबमीनार से महज 28 मीटर कम है। जल्द कोई उपाय नहीं खोजा गया तो एक दिन ऐसा आएगा जब दिल्ली की पहचान कुछ और हो जाएगी। सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी से ये उम्मीद जगी कि जिम्मेदार लोग कुछ प्रभावी कार्रवाई करेंगे। लेकिन शुक्रवार को गाजीपुर लैंडफिल साइट पर जिस तरह से हादसा हुआ, उससे साफ है कि सिविक एजेंसियां अपने काम के प्रति बिल्कुल ही गंभीर नहीं हैं।
गाजीपुर लैंडफिल साइट पर कूड़े का ढेर इतनी तेजी से नीचे आया कि वहां से गुजर रहीं दो कारें हिंडन नहर में जा गिरीं। कई बाइकें और स्कूटी में कूड़े के चपेट में आने से नहर में समा गईं। यही नहीं कूड़े की रफ्तार की वजह से नहर के किनारे बनी लोहे की रेलिंग भी टूटकर बह गई। कूड़े के निस्तारण को लेकर राजनीतिक दल एक-दूसरे पर टीका टिप्पणी कर रहे हैं। कांग्रेस जहां गाजीपुर लैंडफिल साइट को लेकर आप और भाजपा पर निशाना साध रही है, वहीं आप और भाजपा कूड़े के ढेर के लिए कांग्रेस को जिम्मेदार ठहरा रही है। कूड़े के पहाड़ दिल्ली की सूरत को कितना बदरंग कर रहे हैं। इसे जानने और समझने से पहले आइए जानने की कोशिश करते हैं कि कूड़े के पहाड़ किस तरह भरभरा कर सड़क पर आ गया, जिसमें दो लोगों की जान चली गई।