संवाददाता
नई दिल्ली । केन्द्रीय प्रशासनिक न्यायाधिक (कैट) में न्यायिक और प्रशासनिक सदस्यों की भारी कमी के कारण यहां लंबित मामलों की संख्या लगातार बढ़ रही है। हांलाकि सरकार ने सोमवार को ही प्रशासनिक सेवाओं से जुड़े 15 सदस्यों की नियुक्ति की है, लेकिन इसके बावजूद अभी भी न्यायिक और प्रसाशनिक सेवाओं से जुड़े 8-8 सदस्यों के पद खाली है। सदस्यों की कमी के कारण हर साल बढ़ रहे पेंडिंग मामलों की संख्या बढकर अब 17658 तक पहुंच चुकी है। बाकी पदों को जल्द नहीं भरा गया तो ये पेंडिंग मामलों की संख्या अगले तीन माह में 20 हजार से अधिक होंने का अनुमान है।
कैट में तैनात एक सदस्य के मुताबिक इस प्राधिकरण में कई सालों से न्यायिक व प्रशासनिक सदस्यों के पद रिक्त है। लंबे समय बाद प्रशासनिक सेवा सदस्यों के रूप में एक साथ 15 सदस्य सोमवार को नियुक्त किए गए। लेकिन अभी भी दोनों वर्ग के 16 सदस्य पद रिक्त है। कैट में औसतन 30 से 40 केस रोज दर्ज होते हैं। लेकिन सदस्यों की कमी और मामलों की धीमी सुनवाई के कारण लंबित मामलों की संख्या लगातार बढ़ रही है। कैट के लंबित मामलों की संख्या अब 17658 तक पहुंच गई है।
बता दें कि संविधान के अनुच्छेद 323ए के तहत 1985 में तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी के कार्यकाल में संसद ने प्रशासनिक अधिकरण अधिनियम पारित कर केंद्र सरकार के नियंत्रणाधीन कैट को मंजूरी दी थी। ये प्राधिकरण सरकारी सेवाओं और पदों पर नियुक्त अधिकारियों व कर्मचरियों की भर्ती एवं सेवा शर्तों से संबंधित विवादों और शिकायतों पर न्याय दिलाने का काम करता है। इस वक्त देश की राजधानी दिल्ली के मुख्यालय समेत अलग-अलग राज्यों कैंट की 19 बैंच काम कर रही है।
कैट में चेयरमैन बनाए गए किसी हाईकोर्ट के रिटायर्ड या कार्यरत चीफ जस्टिस के अधीन 69 अधिकारी शिकायतों की सुनवाई करते है। कैट में नियुक्त अफसर जिन्हें सदस्य कहा जाता है दो तरह की सेवा क्षेत्र से नियुक्त किए जाते है। न्यायिक सदस्यों के रूप में जजों को नियुक्त किया जाता है। जबकि प्रशासनिक सदस्य के रूप में आईएएस, आईपीएस, आईआरएस रेलवे और दूसरी सेवाओं से जुड़े विशेषज्ञ अधिकारियों को नियुक्त किया जाता है। यह भी ज्ञात रहे कि कैट को संवैधानिक रूप से हाईकोर्ट के बराबर शक्तियां प्राप्त है। इसके फैंसलों को सिर्फ कैट की बैंच वाले राज्यों के हाईकोर्ट में याचिका के जरिए और उसके बाद सर्वोच्च नयायलय में ही चुनौती दी जा सकती है।